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________________ भगवान् महावीर कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे। उनका पूर्व नाम वर्धमान था। वर्धमान के बड़े भाई का नाम नन्दीवर्धन और बहन का नाम सुदर्शना था। वर्धमान बाल्यकाल से ही बड़े धीर-वीर-गम्भीर और अपूर्व बलशाली थे। इन्द्र द्वारा प्रशंसा करने पर एक देव ने वर्धमान की परीक्षा ली थी। लेकिन वह स्वयं अनेक बार वर्धमान से पराजित हुआ। अपनी भूल स्वीकार करते हुए उसने कहा था- “वर्धमान! तुम केवल वीर नहीं, अपितु महावीर हो।' महावीर युवा हुए। उनके भीतर सांसारिक आकर्षण नहीं थे। उन्होंने अपनी माता-पिता की प्रसन्नता के लिए विवाह अवश्य रचाया, परन्तु 'काम'-भोग उन्हें बांध न सके। उस युग में सत्य पर असत्य तथा धर्म पर अधर्म प्रभावी हो रहा था। धर्म के नाम पर पाखण्ड का बोलबाला था।जातिगत विषमताएं चरम पर थीं। स्त्री और शूद्र की आत्मा कराह रही थी। महावीर ने सत्य-सूर्य पर छाए असत्य के बादलों को नष्ट करने का महत्संकल्प लेते हुए राजपाट का त्याग कर दिया । वे अकिंचन मुनि बनकर आत्मसाधना में लीन हो गए। उन्होंने घोर तप प्रारंभ कर दिया । सत्य की समग्र अनुभूति के लिए उन्होंने स्वत्व को शून्य कर दिया। वे कष्ट-क्लेश-भाव-विभाव और प्रभाव से अतीत हो कर मात्र द्रष्टा बन गए। वे संसार रूपी नदी के दोनों तटों- राग और द्वेष से स्वतंत्र होकर लम्बेलम्बे उपवास और अखण्ड समाधि में तल्लीन बने क्चिरते रहे। साढ़े बारह वर्ष के इस साधना-काल में भगवान् महावीर ने कठोर परीषह और कठिन उपसर्ग आत्मस्थ भाव से सहन किए। साढ़े बारह वर्ष के पश्चात्, भगवान् महावीर ने समग्र सत्य का साक्षात्कार किया। वे आत्मस्वरूप केवलज्ञान और केवलदर्शन को उपलब्ध हुए। सत्य से साक्षात्कार करने के पश्चात् भगवान् महावीर ने जगत को सत्य संदेश दिया। उन्होंने पाखण्ड का खण्डन और सत्य का मण्डन किया। उन्होंने कहा- प्रत्येक आत्मा में परमात्मा की ज्योति जल रही है। प्रत्येक आत्मा परमात्मा बन सकती है। ऊंच-नीच जातिगत नहीं, कर्मगत हैं। ब्राह्मण कुल में उत्पन्न व्यक्ति भी परमात्मत्व को उपलब्ध हो सकता है तो शूद्र कुल में उत्पन्न व्यक्ति भी। स्त्री भी और पुरुष भी। सब समान हैं। साधना करने का सभी को समान अधिकार हैं। D J जैन म त तदिक धर्म की सास्कृतिक एकता/362
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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