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नमुचि सात दिन के लिए छः खण्ड का राजा था । उसे चारों
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ओर से बधाई संदेश मिले। लेकिन जैन सन्तों ने उसे बधाई नहीं दी । पहले नमुने घोषणा करा दी - “तीन दिन के भीतर समस्त जैन मुनि उसके राज्य की सीमाओं के बाहर चले जाएं। ऐसा न करने पर उन्हें मृत्युदण्ड दिया जाएगा ।"
इस घोषणा से सर्वत्र भय फैल गया। मुनि जाएं तो कहां जाएं? छः खण्डों से बाहर वे जा नहीं सकते थे । सुव्रताचार्य ने मुनि संघ को अपने पास बुलाया और बोले - " मुनियों! जिन - शासन पर संकट है। इस संकट से केवल विष्णु मुनि ही मुनियों की रक्षा कर सकते हैं। लेकिन वे इतनी दूर हैं कि उन तक इस अत्यल्प समय में पहुंच जाना कठिन है ।" एक युवा मुनि ने कहा- " आचार्य देव! इस तीन दिन के अत्यल्प समय में मैं मुनि विष्णुकुमार तक पहुंच तो सकता हूं, लेकिन पुनः लौट नहीं सकता हूं।”
आचार्य बोले - " मुने! लौटने की चिन्ता मत करो। बस विष्णुमुनि को सूचना भर मिल जाए, यही पर्याप्त हैं । "
युवा मुनि विष्णु मुनि के पास पहुंचे और उनसे नमुचि के दुष्ट आदेश की बात बताई। विष्णु मुनि ने स्थिति समझी और तत्काल आकाश मार्ग से हस्तिनापुर पहुंचे। उन्होंने नमुचि को नानाविध विधियों से समझाने का यत्न किया। लेकिन अहंकार के नशे में डूबे नमुचि ने महामुनि की एक न सुनी। विष्णु मुनि बोले - “नमुचि! मैं तुम्हारे महाराज का ज्येष्ठ भाई हूं । मेरे कहने से कुछ स्थान तो मुनियों के लिए दे दो ।"
" तीन कदम!” नमुचि धूर्तता से हंसा - "मैं इतनी ही दया
कर सकता हूं। मैं तीन कदम भूमि मुनियों को दे सकता हूं।"
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विष्णु मुनि गंभीर होते हुए बोले- “तो तीन कदम ही सही ।" विष्णु मुनि ने विद्या-बल से अपना आकार एक लाख योजन का बना डाला । उन्होंने दो कदमों में ही छः खण्डों को नाप दिया। तीसरा कदम उठाकर वे बोले - “दुष्ट नमुचि! बोल यह तीसरा कदम कहां रखूं ?”
महामुनि के इस रूप से ग्रह-नक्षत्रों की गति डोल गई। देवगणों महामुनि से अपना रूप समेटने की प्रार्थना की। महापद्म चक्रवर्ती दौड़ कर आए और मुनि विष्णुकुमार से क्षमा मांगने लगे । महामुनि ने अपनी विद्या समेट ली। जिन धर्म की जय हुई |
जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता 344