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दोनों ही सनातन धर्म :
वैदिक व जैन- ये दोनों परम्पराएं स्वयं को 'सनातन' धर्म के रूप में विख्यापित करती हैं । महाभारत के अनुसार ब्रह्मा द्वारा उपदिष्ट अहिंसादि धर्म 'सनातन' है:
अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा ।
अनुग्रहश्च दानं च सतां धर्मः सनातनः ॥
- मन, वाणी व क्रिया द्वारा समस्त प्राणियों के साथ कभी द्रोह करना तथा दया व दान - ये सभी 'सनातन' धर्म हैं । मनुस्मृति (4/138) में भी 'सनातन' धर्म नाम का निर्देश किया गया है । जैन परम्परा भी तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट धर्म को 'सनातन धर्म' के नाम से प्रचारित करती है:
ततः सर्वप्रयत्नेन रक्ष्यो धर्मः सनातनः ।
(आदिपुराण - 4/198) - सभी प्रकार से इस सनातन धर्म की रक्षा करनी चाहिए । तीर्थकृद्भिरियंसृष्टा धर्मसृष्टिः सनातनी ।
(आदिपुराण - 4/19)
- तीर्थंकरों ने यह सनातन धर्म - सृष्टि की है ।
निष्कर्षतः अहिंसा-धर्म, चाहे वैदिक परम्परा में हो चाहे जैन परम्परा में, सनातन- अनादि मानवीय धर्म है और वह समग्र भारतीय संस्कृति का 'प्राण' है।
भारतीय संस्कृति की समन्वय-प्रियता
भारतीय संस्कृति से हमारा तात्पर्य उस सांझी संस्कृति से है जिसमें वैदिक/ब्राह्मण व श्रमण / जैन संस्कृतियों का अपूर्व संगम है । इस अपूर्व संगम में भी दोनों संस्कृतियों की मौलिकता सुरक्षित भी है और कालक्रम से हुए परिष्कारों / विचार- परिवर्तनों के कारण
प्रथम खण्ड 11