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________________ का विवाह उससे कर दिया। कहोड़ और सुजाता सुखपूर्वक जीवन-यापन करने लगे। एक बार कहोड़ वेदपाठ कर रहे थे। उनके उच्चारण में त्रुटि थी। सुजाता पास में बैठी थी। उसके गर्भस्थ शिशु ने अपने पिता को टोकासही-सही वेदपाठ करो। गर्भस्थ शिशु की बात सुनकर कहोड़ को आश्चर्य के साथसाथ बड़ा क्रोध आया। उसने इसे अपना अपमान समझा कि एक ऐसा बालक जिसने अभी जन्म भी नहीं लिया है उसे सीख दे रहा है। उसने अपनी पत्नी सुजाता के उदर पर ठोकर मारी। परिणामतः उदरस्थ शिशु की अर्धपक्क देह आठ स्थानों से टेढ़ी-मेढ़ी हो गई। पुत्र-जन्म के समय सुजाता ने अपने पति कहोड़ को धन लाने के लिए महाराजा जनक के दरबार में भेजा। उस समय दरबार में एक विद्वान् आया हुआ था। उसका दावा था कि वह संसार का सर्वोच्च विद्वान् है। उसे जो शास्त्रार्थ में पराजित कर देगा, वह उसका शिष्यत्व स्वीकार कर लेगा। लेकिन उससे जो पराजित होगा, उसे कारागृह में डाला जाएगा। अनेकों विद्वान् कारागृह में बन्द हो चुके थे। कहोड़ ने भी उस विद्वान् से शास्त्रार्थ किया और पराजित हो गए। परिणामस्वरूप उन्हें भी कारागृह में डाल दिया गया। सुजाता से उत्पन्न शिशु कुरूप और टेढ़ा-मेढ़ा था। शारीरिक संरचना के अनुसार उसे अष्टावक्र नाम से पुकारा गया। अष्टावक्र बारह वर्ष के हुए। उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके पिता कारागृह मे बन्द हैं। वे विद्वान् को परास्त करने के लिए राजा जनक के दरबार में पहुंचे। उनके पहुंचते ही वहां बैठे सैकड़ों विद्वान् उनकी आकृति देख कर जोर से हंस पड़े। हंसने वालों में महाराज जनक की हंसी भी सम्मिलित थी। जनक को भी हंसते देखकर बालक अष्टावक्र बहुत जोर से हंसे। "तुम क्यों हंसे बालक?' जनक ने पूछा। “पहले आप हंसे हैं राजन्!” अष्टावक्र बोले- “अतः आप बताइए कि आप क्यों हंसे?" ___“तुम्हारी दैहिक संरचना देखकर।' जनक का उत्तर था"अब तुम बताओ कि क्यों हंसे?" द्वितीय स्खण्ड/297
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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