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उसके वास्तविक स्वरूप से परिचित कराया। उसके भीतर ज्ञान का दीपक जलाया । आत्मीय अन्तर्योति से उयोतित उसके अन्तर्मन में सदाचारी जीवन जीने की दृढ़ता विकसित हुई। उसके जीवन की दिशा ऊर्ध्वमुखी हो गई। इसी तरह, बौद्ध भिक्षु उपगुप्त के सामयिक उपदेश ने वासवदत्ता गण्किा के अन्तर्मन में ज्ञान-ज्योति प्रज्वलित की, और उसे आत्मसाधना के मार्ग पर अग्रसर किया। दक्षिण भारत की गणिका ने भी त्याग, परोपकार व लोक-उपकार की दृष्टि से अपने वैभव का दान कर एक स्वर्ण-कलश से मंदिर के निर्माण को पूर्ण कराया। पहले यहां मंदिर में कोई कलश स्थिर नहीं हो रहे थे, वहां उक्त गणिका द्वारा प्रदत्त धन से निर्मित स्वर्ण-कलश स्थिर हो गया था। इस प्रकार , प्रकृति ने भी उसके भावों की श्रेष्ठता को प्रमाणित किया था।
कथाओं के पात्रादि की भिन्नता भले ही हो, ये कथानक नारी-पात्रों में अन्तर्निहित अन्तर्योति के जागृत होने से उनके आदर्श नारी बनने की क्षमता को उद्घोषित करते हैं।
द्वितीय तण्ड/233