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________________ स्तोत्र' में कहा है- तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ- अर्थात् हे जिनेन्द्र! तुम्हें किया गया मात्र प्रणाम भी अनेक अच्छे फलों को प्रदान करता है। 'नमस्कार महामंत्र' प्रभुपरमेष्ठियों की वन्दना है, उनका तथा उनके गुणों का श्रद्धापूर्ण स्मरण है, साथ ही उनका एकाग्रता-स्वरूप ध्यान भी है। ये सभी क्रियाएं मानसिक शुद्धि को प्रतिफलित करती हुईं सांसारिक संकटों के कारण अशुभ कर्मों को क्षीण या निर्बल करती हैं, परिणामतः संकट स्वतः समाप्त हो जाते हैं। यही नमस्कार महामन्त्र के चमत्कार की सैद्धान्तिक व्याख्या की जाती है। जैन पुराणों में तथा जैन आगमों के कथासाहित्य में प्रभु-भक्ति व नमस्कार महामन्त्र के चामत्कारिक प्रभाव के पोषक अनेक कथानक प्राप्त होते हैं। वैदिक परम्परा में भी प्रभु-भक्ति एवं भक्त द्वारा किये गए प्रभु-स्मरण की अद्भुत चमत्कारपूर्ण उपलब्धियों का प्रचुर निरूपण प्राप्त होता है। वैदिक ऋषि की प्रार्थना है- न स्तोतारं निदे करः (ऋग्वेद, 6/45/ 27) अर्थात् हे परमेश्वर! तुम अपने भक्त (स्तुति करने वाले) को कभी निन्दा का पात्र नहीं बनने देते। वैदिक पुराणों में स्वयं भगवान् ने भक्ति के महत्त्व को इस प्रकार अभिव्यक्त किया है न साधयति मां योगो न सांख्यं धर्म उद्धव । न स्वाध्यायस्तपस्त्यागो यथा भक्तिर्ममोर्जिता। __ (भागवत पु. 11/14/20) - हे उद्धव! मुझे योग, सांख्य, स्वाध्याय, तप, त्याग आदि धर्म उतना प्रसन्न नहीं करते, जितनी कि मेरे प्रति की गई भक्ति मुझे प्रसन्न करती है। मद्भक्तियुक्तो भुवनं पुनाति। (भागवत पु. 11/14/24) - मेरा भक्त समस्त लोक को पवित्र कर सकता है। भक्ति से आत्मा की कर्म-मलों से शुद्धि हो जाती है और कर्मजनित दोषों से भक्त अस्पृष्ट हो जाता है: यथाग्निना हेम मलं जहाति, ध्यातं पुनः स्वं भजते च रूपम्। आत्मा च कर्मानुशयं विधूय मद्भक्तियोगेन भजत्ययो माम्॥ . (भागवत, 11/14/25) द्वितीय गण्ड/213
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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