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________________ "मेरी शादी और हजारों की बरबादी!” अरिष्टनेमि ने सोचा - “नहीं यह नहीं होगा। मैं यह शादी नहीं करूंगा।' “सारथि! इस बाड़े में बन्द सभी पशु-पक्षियों को मुक्त कर दो।' कुमार ने आदेश दिया। सारथी ने अरिष्टनेमि के आदेश का पालन किया। वह पुनः रथ पर आ बैठा। अरिष्टनेमि बोले- “सारथी! रथ को द्वारिका की ओर ले चलो। ऐसे हजारों बाड़े हैं जिन्हें मुझे खोलना होगा। और इसके लिए सांसारिक बन्धनों को तोड़ना होगा।" कहते हुए अरिष्टनेमि ने हाथों पर बन्धे मंगलसूचक कंगनों को तोड़ डाला। सारथी ने अरिष्टनेमि के आदेश का पालन करते हुए रथ घुमा लिया। रंग में भंग पड़ा देखकर सभी अचंभित हो उठे। राजुल स्तंभित बन गई। महाराज समुद्रविजय, श्रीकृष्ण तथा अन्य बड़े बुजुर्गों ने कुमार अरिष्टनेमि को लाख समझाने का प्रयास किया, परन्तु सब विफल रहा। उन प्रसन्नताओं को- जिनके लिए सांसारिक जन सर्वस्व न्योछावर करते हैं- अरिष्टनेमि ने अपने हृदय की करुणा और अहिंसा की वेदिका पर न्योछावर कर दिया। उन्होंने साधना का मार्ग चुना । आत्म बोधकेवलज्ञान प्राप्त करके उन्होंने संसार को सत्य का संदेश दिया।हिंसा, अत्याचार, मदिरापान आदि बुराइयों का बहिष्कार किया तथा अहिंसा, सत्य, सदाचार और सादगी का प्रचार और प्रसार किया। लाखों-लाखों भव्यात्माओं के लिए वे कल्याण के महाद्वार बने। [त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित से] [२] करुणामयी शबरी विदिक) रामायण में शबरी के चरित्र को बहुत सम्मान मिला है। श्रीराम को प्रेम-भक्ति के रस से पगे झूठे बेर खिलाकर वह भारतीय जनमानस के हृदय में अमर हो गई। शबरी का जन्म निम्न कुल में हुआ था। उसके पिता भील थे। जैन धर्म एवं पदिक धर्म की सारकृतिक एकता/138
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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