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जैनाचार्य सिद्धसेन ज्ञेयः परसिद्धान्तः,स्वपक्षबलनिश्चयोपलब्ध्यर्थम्।
(द्वात्रिंशिका-8/19) यदि अपने पक्ष या सिद्धान्त की शक्ति का निर्णय भी करना हो, तो भी दूसरे के सिद्धान्त को जानना अपेक्षित है। उदधाविव सर्वसिन्धवः समुदीर्णास्त्वयि नाथ दृष्टयः ।
(द्वात्रिंशिका-4/15) - जैसे सारी नदियाँ एक ही समुद्र में जाकर मिलती हैं, उसी प्रकार सभी दृष्टियों (दार्शनिक विचारधाराओं) का लक्ष्य एक परमात्मा ही है।
विधि-ब्रह्म-लोकेश-शम्भू-स्वयम्भूचतुर्वकामुख्याभिधानां विधानम्। धुवोऽयो य ऊचे जगत्सर्गहेतुः स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ।
(द्वात्रिंशिका- 21/7) - मेरे लिए एकमात्र परमात्मा जिनेन्द्र ही ध्रुवभूत शरण है, जिसे सृष्टिकर्ता, ब्रह्मा, विष्णु, शम्भू, स्वयम्भू, चतुर्मुख इत्यादि प्रमुख नाम दिये जाते रहे हैं। जैनाचार्य पूज्यपाद
शिवाय धात्रे सुगताय विष्णवे, जिनाय तस्मै सकलात्मने नमः।
(समाधिशतक-2) - जिनेन्द्र को मेरी वन्दना है, जिसे शिव, धाता, सुगत (बुद्ध), विष्णु या सर्वभूतस्थ आत्मा कहा जाता है।
जनम दिकम की सारत
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