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प्रस्तुत कृति की वैचारिक पृष्ठभूमिः
पूज्य श्री गुरुदेव आचार्यकल्प मुनिश्री रामकृष्ण जी ..महाराज के पावन सान्निध्य में रहकर समन्वयात्मक अध्ययन । व अनुसन्धान की प्रेरणा मुझे प्राप्त हुई। उन्हीं की प्रेरणा व प्रभावक मार्गनिर्देशन में मेरी रुचि समस्त भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के अध्ययन व अनुसन्धान में जागृत हुई
और प्रस्तुत कृति उसी का एक मूर्तिमन्त रूप है। + प्रस्तुत कृति में वैदिक व जैन- दोनों धर्मों में
अनुस्यूत-एकता, एकसूत्रता व समन्वित दृष्टि को रेखांकित करने + का मेरा प्रयास रहा है। यद्यपि यह एक प्राथमिक प्रयास है और ॐ ऐसे अनेक अछूते आयाम अवशिष्ट हैं, जिन्हें लेकर अभी काफी अध्ययन-अनुसन्धान अपेक्षित है।
वैदिक व जैन- इन दोनों परम्पराओं को एक-दूसरे "के निकट लाने और सांस्कृतिक एकता को रेखांकित करने की है "दिशा में मेरा यह लघु प्रयास है। इस प्रयास में मैं कितना सफलफ हुआ हूं और यह कृति कितनी सार्थक है- यह निर्णय मैं विज्ञ पाठकों व अनुसन्धाता मनीषियों पर छोड़ता हूं।
-सुभद्र मुनि
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