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________________ नायक-झूठा दावा है चेतन जीवका । यह टेर ॥ मुद्दालेकी ॥ ८ ॥ हमने नहीं भरमाया इसको । यह मेरे घर आया ।। करजा लेकर हमसे खाया । ऐसा फरेब मचायाजी॥जिन. । झुटा. ॥ ९॥ विषयभोगमें रमियो चेतन । घाटा नफा नहीं जाना । करजदार जब लारे लागा। तब लागा पिस्तानाजी ॥ जिन ।। झुटा ॥ १० ॥ हाजर खडे गव्हा हमारे । पूछिये हाल ज्युं सारा ॥ विनालिया करजा चेतनसें । कैसे करे किनाराजी ॥ गिन. ॥ झुटा. ॥ ११ ॥ चेतन कहे सत्ता भी मांहीं । सुनो सासन सिरदार ।। इमानदार है गव्हा हमारे । जाणे सब संसारजी ॥ जिन.॥ मुगती. ॥ १२ ॥ मैं चेतन अनाथ प्रभुजी । करम फिरे भी भारी ॥ जीव अनंते राहा चलतकुं । लुट चौयांसीमें डारीजी | जिन. ॥ मुगती. ॥ १३ ॥ बडे बडे पंडित इण लुटे । ऐसा दम बतलाया ॥ धरम कहा और-पाप कराया। ऐसा करज चढायाजी ॥ जिन. ।। मुगती. ॥ १४ ॥ हिंसामाहि धरम बताया । तपशा सेती डिगाया ॥ इंद्रियसुख में मगन करीने । झूटाजाल फैलायाजी जिन. ।। मुगती. ॥ १५ ॥ ऐसा करो इनसाफ प्रभुजी । अपील होने नहीं पावे ॥ हा करसी चतनकी होवे । जन्म-मरण मिट जावेजी ॥ जिन. ॥ मुगती, ॥१६॥ ज्ञान दर्शन करी मुन्सफी।। दोनोंको समझाया ॥ चेतनकी डिगरी करदीनी करमोंका करज बतायाजी ॥ जिन. ॥ मुगती ॥ १७ ॥
SR No.006293
Book TitleSaddharm Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNanebai Lakhmichand Gaiakwad
Publication Year1863
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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