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________________ [ ५० ] मुक्ति जानेकी डिगरी. [ हीर रंझैका ख्यालकी, देशी ] मेरी अदालत प्रभुजी कीजिये । जिनशासन नायक- मुगती जानेकी डिगरी दीजिये | यह टेर || खुद चेतन मुद्दई बना है । आटुं कर्म मुद्दाला ॥ दावा रस्ता मुगती मारगका | धोका दे जाय टालाजी ॥ जिन. मुगती. ॥ १ ॥ तब कागद इस्टॉप लिया || तलवाणा क्षमा विचारी । सज्झाय ध्यान मजमून बनाकर । अरजी आन गुजारीजी ॥ जिन, ॥ २ ॥ मैं जाता था मुगती मारगमें । करमोने आ घेरा || धोखा देकर राहा भुलाया । लूट लिया सब डेराजी ॥ जिन. || ३ || बहोत खराब किया करमोने | चौ-यांसीके मांही ॥ दु:ख अनंता पाया मैंने । अंत पार कछु नाहीं जी ॥ जिन, ॥ ४ ॥ सच्चे मिळे वकील कानूनी पंचमहाव्रत धारी || सूत्र देख मए सौदा किया । तब मैं अरजी डारीजी ॥ जिन. ॥ ५ ॥ पाचुं समती तनुं गुप्ती । यह आटुं गवाह जुळावों || शीळ असेंसर बडा चौधरी उसकुं पूछकर मंगावोजी ॥ जिन. ! ६ ॥ अरजी गुजारी चेतन तेरी । हुवा सफीना जारी || हाजर आवो जबाब दिखावो | लावो सावृति सारीजी ॥ जिन ॥ ७ ॥ आहं मुदाळे हाजर आए । मोह मुक्त्यार बुलाए । प्यार कषाय अरु आठो मदकुं | साथ गवाहीमें लाएजी ॥ जिनशासन
SR No.006293
Book TitleSaddharm Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNanebai Lakhmichand Gaiakwad
Publication Year1863
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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