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________________ [ ६४ ] वस्त्रभूषण भोजनादिसे शरीरका पोषण करने में सुख मानते हैं उनको कृतांत [काल] का भय है, काल शरीरको भक्ष कर लेता है । इस प्रकार संसारके सब पदार्थों भयव्याप्त होरहे हैं, केवल वैराग्य [धर्म] है उसमें किसी भी प्रकारका भय नहीं है। ___ उक्त कथनको आप ही अपनी ज्ञानदृष्टि कर जगत्में रहे हुए धनेश्वरियों, कुटुंबाधिकारियों, विषयाशक्तोंके अंतःकरणका अवलोकन करनेसे प्रत्यक्ष होगया होगा कि बहुतोंका मन सदेव संतप्त रहता है, चारों तरफका डर उनके मनमें रहता है, इज्जत संभालनेकी फिकरमें लगे रहते हैं, वे भिक्षुक के समान अपना आयुष्य पूर्ण करते हैं, इसलिए ही ज्ञानी महापुरुषोंने “ संसारको असार " अर्थात् केवल दुःखपूर्ण ही कहा है, संसारीजन मोहमायाके फंदमें फसे हुए झूठा नाम मिलानेके लिए व विषयोपभोगमें व्यर्थ जन्म गमाते हैं, अपनी आत्माके साथ विश्वासघात करनेसे आत्मघाती कहे जाते हैं।
SR No.006293
Book TitleSaddharm Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNanebai Lakhmichand Gaiakwad
Publication Year1863
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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