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( ३ ) इस ही प्रकार से मुसलमान बंधु बकराईद के दिन बकरोंका वध करते हैं वह भी उनके शास्त्रविरुद्ध है, देखिए - " सुराह हजकी ३६ वीं आयात में खुद्द अल्लातालाने फरमाया है किगोस्त [मांस] और लहू [रक्त ] मुझे पहुंचेगा नहीं किंतु एक परहेजगारी [पापका] डर ही पहुंचेगा
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fe दिन दुवा मारनेका हेतु — इब्राहीम पैगंबर के ईमानकी परीक्षा देखने के लिए हुक्म दिया कि - "तेरी प्यारी वस्तुको मुझे दे" उस वक्त पैगंबरने अपना एकाएक लटका [ पुत्र ] इस्माइलको मार डालने को तैयार हुए, उसे मारनेको हाथ नहीं चला तब अपनी आंखोंपर कपडे की पट्टी बांधकर अपने हाथमें छुरी लेकर मारने लगे, किंतु उस वक्त पुत्र के स्थान दुम्बा होगया वो मर गया और पुत्र बच गया । ( कितने का कहना है कि दुम्बेको पुनः सजीव कर दिया ) उस दिन से यह रिवान चाल हुआ है, ऐसा उन्होंने किताब में लिखा है । सुज्ञ बन्धुओं ! अब आप जरा दीर्घ दृष्टिसे विचार कीजिये कि -- अल्लातालाका मुख्य हेतु क्या था ? पैगंबर की प्रिय वस्तु मांगी थी कि बकरा मांगा था ? जो अल्लाताळाको बकरा ही प्रिय होता तो बकरा ही मांगा होता, किंतु नहीं सिर्फ परीक्षा के लिए ही यह आज्ञा दी थी और