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________________ को मारे हैं, तेरे मरनेके बाद वे भी तुझे इस ही प्रकार मारनेको तैयार हो रहे हैं। ऐसा कहकर नारद ऋषिने उस राजाको पशु भी बताए, उनको देखकर राजा भयभीत हुआ । तब नारद ऋषि ने कहा कि इस पापसे मुक्त होनेके लिए अब तू इस पापयज्ञको त्याग कर धर्मयज्ञ कर-यथाज्ञानपालिपरिक्षिप्तब्रह्मचर्यदयाम्भसि ॥ स्नात्वातिविमले तीर्थे पापपंकापहारिण ॥ १ ॥ ध्यानानौ जीवकुंडस्थे दममारतदीपिते ॥ असत्कर्मसमित्क्षेपैरग्निहोत्रं कुरुत्तमम् ॥ २ ॥ कषायपशुभिदुष्टधर्मकामार्थनाशकैः ॥ शममन्त्रहुतैर्यज्ञं विधेहि विहितं वुध ! ॥ ३ ॥ अर्थात्-ज्ञानरूप तालाबमें गिरा हुआ ब्रह्मचर्य और दयारूप पानी ऐसे तीर्थ में स्नान कर पापरूप कर्दमको दूर कर निर्मल बन, फिर जीवरूप कुंडमें दमरूप पवन कर प्रदीप्त ऐसी जो ज्ञानरूपी अग्नि है उसमें अष्टकर्मरूपी काष्ठको डालकर उत्तम अग्निहोत्र करों । धर्म, काम और अर्थके नष्ट करने वाले शमरूपी मंत्रकी आहुतिमें प्राप्त हुए ऐसे दुष्ट
SR No.006293
Book TitleSaddharm Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNanebai Lakhmichand Gaiakwad
Publication Year1863
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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