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________________ प्रस्तावना. पोथी प्यारी प्रेम की हर हिवडे को हार । जीव जतन कर राखजो पोथी सेती प्यार ॥ १ ॥ जलसुं जतन कर राखजो तेल अगनखं दूर। मूरख हाथ मत दीजिये जोखम खाय जरूर ॥ २ ॥ परमपूज्य मुनिराज श्री १००८ रतनचंदजी महाराजके संप्र. दायके तरणतारण बालब्रह्मचारी परमप्रतापी पूज्य श्री १००८ मुनिश्री हस्तिमल्लजीमहाराज व बडा मुनिश्री सुजानमलजी महाराज आदि ठाणे ५ साधुवोंका यहांपर पदार्पण हुआ, उस समय उनके उपदे. शसे हर्षित व प्रभावित होकर जोधपुर मारवाड निवासिनी हाल मु. सोलापुर बीजापुर वेस नेनीवाई भ्रतार लखमीचंद गायकवाडने इस पुस्तकके प्रकाशनकी भावना बताई । अत एव संसारमें समस्त प्राणियोंको सुख पहुंचानेवाले अहिंसाधर्मके पोषक इस पुस्तकको अपने खर्चसे उक्त बाईने प्रकाशित किया है । इस पुस्तक की रचना पूज्य तपोनिधि अमोलक ऋषिजीने परिश्रमके साथ की है, इसका अध्ययन कर सज्जनोने सद्धर्मबोध किया तो सबकी भावना सफल कल्याण पावर प्रिंटिंग प्रेसके मालिक श्रीविद्यावाचस्पति पं. वर्षमान पार्श्वनाथ शास्त्री न्यायकाव्यतीर्थने इसका संशोधन कर शुद्धताके साथ मुद्रणकर देनेका कष्ट उठाया इसके लिए उनको धन्यवाद है। चाटीगल्ली विनीत सोलापुर पारसमल मिलापचंद सुराणा
SR No.006293
Book TitleSaddharm Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNanebai Lakhmichand Gaiakwad
Publication Year1863
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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