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केंद्र
[ धातु मात्र ] रखते नहीं, ऐसे पंचमहाव्रत पालते हैं, रात्री को कुछ खाते पीते नहीं गाडी घोडे रेल आदि किसी भी वाहन पर बैठते नहीं हैं, बिना कारण मर्यादा उपरान्त एक स्थान पर रहते नहीं हैं, गृहस्थ के द्वारा अपना कोई भी काम कराते नहीं, मर्यादा उपरान्त पात्र भी नहीं रखते हैं, इत्यादि अनेक काँठेननियमों का पालन करते हैं। परन्तु इसका शरीर का रक्षण किये बिना स्वात्मा तथा परात्माका उद्धार नहीं होता है इसलिये शरीर का संरक्षण करने के लिये श्वेत वस्त्र, आहार वगैरा जो चाहिये सो निरवद्य (किसी को भी दुःख नहीं होवे ऐसी ) वृत्ती से ग्रहण करके शरीर का निर्वाह करते हैं !
जैसे शौकीन लोग अपने आराम के लिये फूलों का बगीचा लगाते हैं, वहां अविचिन्त्य भ्रमर आकर उन फूलों को किंचित् भी दुःख नहीं होवे इस प्रकार रस ग्रहण करके अपनी आत्मा को तृप्त करता है, उसी प्रकार गृहस्थ ने अपने शरीर के