SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २३६ ] - [ शङ्केश्वर महातीर्थ अनघ अमल अज चिद्धनराशि | आनंदघन प्रभु आतमराम || तोरी ० ( ५ ) [ १२३ ] श्री हर्षविजयजी महाराजविरचित श्री शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन श्री० (२) ( भाईजी कृत - जिनंदा तोरे चरण कमलकी रे - ए देशी ) श्रीशंखेश्वर दरशन कर रे, कर रे कररे कररे कर रे (ए आंकणी) अद्भुत रूप मनोहर सुंदर, देखत तन मन हर रे । अकल सरूपी जगत जयंकर, काम क्रोध सब झर रे ॥ श्री० (१) कमठासुर को मान भंजन कर, जगत जयकार तुं कर रे । जादव संकट दूर करीने, नाम शंखेश्वर धर रे ॥ देश देशांतर संघ आवे, पूजा नवनवी कर रे । अंगकी रचना पापकी कटना, सकल कर्म दूर टर रे ॥ श्री० (३) - राधनपुर संघ मली अति सुंदर, ओछव रचना भर रे । संघपति शिवचंदभाई हर्षी, जन्म जन्म दुःख हर रे ॥ श्री० (४) वदी कार्तिक पंचमीने दिवसे, यात्रा करी मनहर रे । सकल संघकुं महानंद उपजे, ओछव मंगल वर रे ॥ वामानंदन जगदुःखखंडन, चंद वदन सम घर रे । मूर्ति प्यारी मोहनगारी, निरखत आनंदभर रे ॥ संवत सागर चार अंग विधु, ऊर्ज मास वदी खर रे । पास शंखेश्वर प्रभु अलवेसर, मुक्तिरमणीकुंवर रे ॥ श्री० (७) क्रोध लोभ सब दूर निवारी, पास प्रभु चित्त घर रे । आत्म लक्ष्मी ते पद पामी, आनंद हर्ष तुं वर रे ॥ श्री० (८) श्री० (५) श्री० (६)
SR No.006291
Book TitleSankheshwar Mahatirh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1942
Total Pages562
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy