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________________ कल्प-स्तोत्रादि-सन्दोह ] तुं मनमोहन चिद्घन स्वामी रे । साहिब चंद चकोर ॥ तुं मन विकसे भविजन केरा रे । फारेगा कर्म हिंडोर || तुंमज सुनेगा दिलकी बातां रे । तारोगा नाथ खरोर ॥ पास ० (२) पास ० (३) पास० (४) तुम आतम आनंद दाता रे । ध्याता हुं तुमरा किसोर || पास ० ( ५ ) [ १२२ ] श्रीविजयानंद सूरि (आत्मारामजी) म० रचित श्री शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन ( राग - कलिंगडानी ठुमरी ) तोरी छबी मनोहारी शंखेश श्याम, नीलांबुजवत तोरे नयन श्याम, तोरी छबी ० (ए आंकणी) चंद्र जू वदन जगत तूम भासे । तोरी० (१) कलमल पंक पखारे नाम || नील वरण तनु भवि मन मोहे | सोहे त्रिभुवन करुणाधाम ॥ पारस पारससम करे जनको । हाटक करनन तुमरो काम ० || तोरी० (३) अजर अखंडित मंडित निज गुन । ईश निरंजन पूरे काम ॥ तोरी० (२) - [ २३५ 1. तोरी० (४)
SR No.006291
Book TitleSankheshwar Mahatirh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1942
Total Pages562
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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