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________________ [ २३४ ]. [ शतेश्वर महातीर्थ [ १२० ] श्री विजयानंदसूरि (आत्मारामजी) म० रचित श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन मोरी बैंयां तो पकर शंखेश श्याम, मोरी० । करुणारस भरे तोरे नयन श्याम, मोरी बैयां० (१) तुम तो तार फर्णीद जग साचे, तुम तो ० । मोरी बैयां० (२) हमकुं विसार न करुणाधाम, जादवपति अरति तें कापी, जादव० धारित जगत शंखेश नाम, हम तो काल पंचम वश आये, हम तो० । तुमेरो ही शरण जिनेश नाम, संयम तप करणे शुद्ध शक्ति, संयम ० । न धरुं कर्म झकोर पाम, । मोरी बैयां ० (३) मोरी बैयां ० ( ४ ) मोरी बैयां० (3) आनंद रस पूरण सुख देखी, आनंद० । आनंद पूरण आत्माराम, मोरी बैयां० (६) [ १२१ ] श्रीविजयानंद सूरि (आत्मारामजी) म० रचित श्री शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन (राग - कलींगडा ) पास प्रभु रे तुम हम सीर के मोर, पास प्रभु० (ए आंकणी ) जो कोई सिमरे शंखेश्वर प्रभु रे । डारेगा पाप नीचोर | पास० (१)
SR No.006291
Book TitleSankheshwar Mahatirh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1942
Total Pages562
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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