________________
-कल्प-स्तोत्रादि-सन्दोह ]
-[ २३३ ] हारे मति लीन भई तद ग्यंन मई, अब रंग सुरंग में लीन सखीरी प्रेम फंद में आन परी ।
अने हां हां जगजीवन० (२) चंद्र चकोर ज्यु लीन भई, दृग जोतमें जोति मिलाय रही।
__ अने हां हां जगजीवनकी० (३) प्रभु कहे प्रभु पास शंखेश्वर, देखत सुरवधू मोही रही।
अने हां हां जगजीवनकी० (४) [११९] श्रीचिदानंदजीविरचित श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन*
( चाल-नथणीसे ललकारुंगी) श्री शंखेसर पास जिणंदके, चरण कमल चित्त लागी।
सुणजो रे सज्जन नित्य, ध्याउंगी (आंकणी) एहवा पण दृढ धारी हियामें, अन्य द्वार नहि जाउंगी ॥ सुण० (१) सुंदर सुरंग सद्धणी मूरत, निरख नयन सुख पाउंगी ॥ सुण० (२) चम्पा चमेली अरु मोगरा, अंगीया अंग रचाउंगी ॥ सुण० (३) शीलादिक शणगार सजी नित्य, नाटक प्रभुकुं दिखाउंगी ॥ सु० (४) चिदानंद प्रभु प्राण जीवनकुं, मोतीयन थाल वधाउंगी। सुन० (५)
* A. शिवनाय दुमाल, पूना त२३थी प्रशित “येत्यवानસ્તુતિ-સ્તવનાદિ સંગ્રહ” ભાગ પહેલામાંથી ઉતાર્યું.