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________________ - [ शतेश्वर महातीर्थ भक्ति सार गुण अपार धरत प्यार, काम छार दुरित दूर डारके || श्री जिन० ( १ ) सजि शिणगार मनीह अंगे हांजी जिहां, करत ग्यांन धरत ध्यान मिटत मान होत तांन । देव ललित भक्ति कलित पाप गलित दुरित चलित, तत थेईथेई हावभाव नृत्य करत धारकें ॥ श्री जिन० (२) हस्तक सुंदर द्वादश किरणें हांजी जिहां, सघट घाट करत नाट त्यजि उचाट देवि घाट । [ २३२ ] ललित हार हृदय सार धरत प्यार गुन अपार, वाजे वंश भेरी ताल दुंदुभि अपारके || श्री जिन० (३) शंखेश्वरपुर मंडन सोहैं हांजी जिहां, पार्श्वनाथ मोक्ष साथ अखय आथ देत हाथ । दान सूर चढत नूर पाप पूर करत दूर, पद्मविजश शिष्य रूपविजय सार कारकें ॥ श्री० जिन० (४) [ ११८ ] श्रीप्रभुविरचित श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन * ( ठुमरीनी चाल ) जगजीवनकी छबी देख सखी, मेरे नयन में छवि बाह रही । अने हां हां जगजीवनकी ० (१) * પાટણની મુ. જસવિજયજીના ભંડારની હસ્તપ્રત ઉપરથી ઉતાર્યું.
SR No.006291
Book TitleSankheshwar Mahatirh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1942
Total Pages562
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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