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कल्प-स्तोत्रादि-सन्दोह ]
[११६] श्रीरंगविजयजीविरचित श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन' श्रीशंखेश्वर पास जिनेसर अरज सुनोजी,
कर मेरबांनी हां रे मेरी अरज० (आंकणी) तारक बिरुद सुनी में आयो, तुम चरणें सरनां जानी ॥ श्री० (१) सोल सहस मुनि आदि जुगति, तारें तुम अमृत बांनी। उनकुं आतिमऋद्धि भर सिद्धे, पाए परम प्रभुजी दानी ॥ श्री० (२) पन्नग पावक जलतो उगार्यो, ज्ञान दिसा तुम पहेंचानी । उनकुं दरस सरस भयो तेरो, सुरपति पदवी छहेरानी । श्री० (३) में आयो एह कीरत सुंके, विनति एक सुनिये ज्ञानी । भवोभव तुम चरनांकी सेवा, साहीब दीजें दिल मानी ॥ श्री० (४) अश्वसेन वामाजीको नंदक, वंदत जगके सुलतानी। अब तो लेहेर मेहर मोय कीजें. रंग सदा शिव सुखदानी ॥ श्री० (५)
[११७] श्रीरूपविजयजीविरचित
श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन* सरस चरण शरण ग्रहे श्री जिनराज के. याकी सेव करन सन आवै हांजी जिहां,
नमत इंद देववृंद पुन्यकंद दलितदंद । + પાટણની મુ. જસવિજયજીના ભંડારની હસ્તપ્રત ઉપરથી ઉતાર્યું. * પાટણની મુ. જસવિજયજીના ભંડારની હસ્તપ્રત ઉપરથી ઉતાર્યું.