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-[शङ्केश्वर महातीर्थ[११५] श्रीमाणिक्यविजयजीविरचित
श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन ( नर मोहीडा तोसें अबहि रे बोलू रे
चलजा रे जीवडा बताई दे कांनीया. नर मोहिडा-ए देशी ) प्रीत बनी निभाईय बनेंगी, सुनो अब मेरे संखेश्वर सांईयां । प्री०
और ठोर बहु प्रीत करत हैं, भक्तको रीत कठिन करीईया ॥ प्री० (१) बालक गोद पर्यो बहु गुंदे, उर थल लायकें ले तबलीया । प्री० गौवा चरत बन मन बछुवायें, तहि पयपान हि पोस धरीया ॥ प्रो० (२) जल चरती चलति जो जोबत, निज तनु तनुरथपाल तह हईयां। प्री० पनीहारी कुंभ र छपालत, चाले लटकति तारी दैयां ॥ प्री० (३) सेव्यो निज जांनी नावपे तारत, तारक बिरुद ए आप वरैया । प्री० सकल जगत को जलद जीवावत, दाम म मांगत दान नभईया ॥ प्री० (४) भानु उद्योत करे महिमावत, किते जन देत हैं रोक रूपैया । प्री० इसे न्याय केंते ज्यो कहावत, आप तरे अब मोहि तरैया ॥ प्री० (५) विजयजिनेन्द्रसूरि संग उमंगे, श्री संखेश्वर सार करैयां । प्री० चिर रवि हुय मेरु जुं प्रतपो, ठकुराई थिर थापैयां ॥ प्री० (६) त्रिहु जगमां हि जिन तेरो ही महिमा, जय जय बोलत जगजनैयां । प्री० माणिक कहें अब एतनो ही मांगु, दीज चरन सेवा फल पईयां ॥ प्री० (७)
પાટણની મુ. જયવિજયજીના ભંડારની હસ્તપ્રત ઉપરથી ઉતાર્યું.