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________________ -कल्प-स्तोत्रादि-सन्दोह ] -[ २२९ ] हिन्दी स्तवन [ ११४] उपाध्याय श्रीयशोविजयजीविरचित श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन अब मोहे ऐसी आय बनी। श्री संखेश्वर पास जिनेसर, मेरे तुं एक धनी॥ अब० (१) तु बिनु कोउ चित्त न सुहावे, आवे कोडि गुणी । मेरो मन तुज उपर रसियो, अलि जिम कमल भणी ॥ अब० (२) ... तुम नामे सवि संकट चूरे, नागराज धरणी। नाम जपुं निशि वासर तेरो, ए शुभ मुज करणी। अब० (३) कोपानल उपजावत दुर्जन, मथन वचन अरनी । नाम जपुं जलधार तिहां तुज, धारुं दुःखहरनी॥ अब० (४) मिथ्यामति बहु जन है जगमें, पद न धरत धरनी । उनतें अब तुज भक्ति प्रभावें, भय नहि एक कनी ॥ अब० (५) सजन–नयन सुधारस-अंजन, दुरजन रवि भरनी । तुज मूरति निरखे सो पावे, सुख जस लील घनी ॥ अब० (६) * 'पूर साहित्य संग्रह' पृ० १०० भांशी जतायु.
SR No.006291
Book TitleSankheshwar Mahatirh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1942
Total Pages562
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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