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________________ -कल्प-स्तोत्रादि-सन्दोह ] -[५] एवं वचइ कालो कयवयवासेहिं रामवणवासो।। राहवपहावं देसणहेउं लोआण हरिवयणा ॥१४॥ •रयणजडियखयरसंजुअसुरजुअलेणं च दंडगारण्णे।। सतुरयरहो अ पडिमा दिन्नेसा रामभहस्स ॥१५॥ सगमासे नवदिअहे विदेहदुहिओवणीयकुसुमेहिं ।। भत्तिभरनिब्भरेणं महिआ रहुपुंगवेण तहा ॥१६॥ रामस्स पबलकम्मयमलंघणिज्जं च वसणमोइण्णं । नाऊण सुरा भुजो तं पडिमं निति तं ठाणं ॥१७॥ पूअइ पुणो वि सक्को पकिट्ठभत्तीइ दिव्वभोएहि । एवं जा संपुना एगारसवासलक्खा य ॥१८॥ तेणं कालेणं जउवंसे बलएव-कण्ह-जिणनाहा। अवइन्ना संपत्ता जुव्वणमह केसवो रज्जं ॥१९॥ कण्हेण जरासंधस्स विग्गहे निअदलोवसग्गेसु । . पुट्ठो नेमि भयवं पच्चूहविणासणोवायं ॥२०॥ तत्तो आइसइ पहू-पुरिसत्तम ! मज्झ सिद्धिगमणाओ। सगसयपण्णासाहिअतेसीसहसेहिं वरिसाणं ॥२१॥ होही पासो अरिहा विविहाहिट्ठायगेहिं नयचलणो । जस्सच्चान्हवणजलसित्ते लोए समइ असिवं ॥२२॥ सामी ! संपइ कत्थवि तस्स जिणिदस्स चिट्ठए पडिमा । इअचक्कधरेणुत्ते तमिदमहिअं कहइ नाहो ॥२३॥ इअजिणजणद्दणाणं अह सो मुणिउं मणोगयं भावं ।। मायलिसारहिसहिअं रहमेयं पडिममप्पेहि ॥२४॥
SR No.006291
Book TitleSankheshwar Mahatirh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1942
Total Pages562
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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