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तब तो तुम बड़े भाग्यशाली हो।
आर्य स्थूलभद्र परन्तु माँ को यह अच्छा नहीं लगा।
क्यों ?
माँ कहती है, ब्राह्मण को तो। आत्मज्ञानी होना चाहिए। राजेश्वरी नरकेश्वरी होता है। इसलिए उसने मेरा यह दाँत पत्थर से रगड़कर आधा तोड़ दिया।
चलो, ठीक ही किया। हाँ, मुझे भी ऐसा ही स्थूलभद्र और चाणक्य दोनों गहरे मित्र बन अब नरक से तो बचे। फिर हम लगता है। विद्या पढ़ना | गये। दोनों ही तीक्ष्ण बुद्धि और मेधावी थे। ब्राह्मणपुत्रों को राजा बनकर चाहिए, विद्या ही मनुष्य
ज क्या करना है? राजमंत्री को महान बनाती है।
तो बनेंगे ना?
अध्ययन समाप्त करके चाणक्य भी स्थूलभद्र के साथ पाटलिपुत्र आ गया। स्थूलभद्र ने पिता से परिचय कराया
पिताश्री ! यह मेरा मित्र है, विष्णुगुप्त,
आयुष्मान् भव
वत्स!
चाणक्य।
शकडाल ने भी उसे पुत्र की भाँति स्नेह किया। चाणक्य कुछ दिन वहीं रहा। रात के समय शकडाल के पास बैठकर दोनों ही राजनीति, धर्मनीति आदि की शिक्षा लेते रहते।