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आर्य स्थूलभद्र सारी सभा चकित होकर स्थूलभद्र की ओर देखने लगी
क्या कह रहे हो? संयम ! संसार
त्याग!
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हाँ महाराज ! मैंने निर्णय कर लिया है। संसार की वास्तविकता ।
समझ ली है। अब मैं अपना स्वामी स्वयं बनूंगा। मैं संसार
त्यागकर दीक्षा लूँगा। कुछ सभासद आपस में कानाफूसी करते हैं
देख लेना यह संयम के बहाने वापस कोशा के पास ही जायेगा। ऐसा रसिया, कामी पुरुष साधु
बनेगा? असंभव !
राजा नन्द को भी विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने कहा
वत्स ! शोक में ऐसी 'भावुकता स्वाभाविक है। तुम गंभीरता से सोचो। तुम्हें साधु/
नहीं, मंत्री बनना है।
महाराज ! मेरा निर्णय अटल है। मैं आर्य संभूति विजय का शिष्य बनूँगा।
भैया ! यह क्या कह रहे हो? ऐसा मत करो। हमें छोड़कर
मत जाओ।