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राजपुरोहित की ओर मुड़कर बोले
आर्य स्थूलभद्र
स्थूलभद्र ने हाथ जोड़कर कहा-" महाराज!
UUUUU पहले मेरी
बात को समझ लें।
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पुरोहित जी! मंत्री पद प्रदान का शुभ मुहूर्त
देखिए।
तुम क्या कहना
चाहते हो?
| मेरे पिताश्री की इच्छा थी, "पुत्र तुम मेरे से भी महान् बनना।" इसलिए मैं अपने पिता से भी महान् बनना चाहता हूँ।
हमें विश्वास | | महाराज | राजनीति में मैं है तुम्हारे जैसा उनसे बढ़कर कतई नहीं हो योग्य पुत्र पिता सकता। मेरी महानता का
मार्ग है-संसार त्यागकर होगा। संयम ग्रहण करना।
क्या
?
यह सुनकर राजा धननन्द स्तम्भित हो गये।