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आर्य स्थूलभद्र स्थूलभद्र के सामने पिता की मृत्यु की घटना सजीव हो उठी
उसका शरीर काँप उठा।
वह सोचने लगा
फिर सोचता हैजिस पद ने मेरे निर्दोष
यह पद कितना ही गौरवास्पद । पिता की जान ली। क्या मैं उसी । हो। आखिर तो राजा का सेवक ही पद को स्वीकार कर लूँ।
होता है मंत्री। सेवक कभी अपनी
इच्छा से नहीं जी सकता।
नहीं, नहीं, मैं यह पद नहीं स्वीकार कर
सकता।
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काफी देर विचारों में खोये रहने के पश्चात् उसने निर्णायक स्वर में राजा से कहा
हाँ, हम भी तो यही चाहते हैं।
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महाराज ! क्षमा करें। मैंने बहुत सोच विचार किया है, मैं अपने पुत्र-धर्म का पालन करूंगा।
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