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________________ आर्य स्थूलभद्र वररुचि शर्मिंदा होकर जमीन की तरफ देखने लगा। राजा ने उसे फटकारा COD (विद्वान् होकर भी काव्य चोरी करते शर्म नहीं आई। दाँत कटकटाता, पैर पीटता वररुचि अपमानित हो राजसभा से निकल गया। वह सीधा अपने मित्र के घर गया और आज की घटना सुनाते हुए कहा शकडाल महाधूर्त है। उसने मेरे साथ धोखा किया है। मैं बदला लूँगा। फिर अपनी शिखा पर गाँठ बाँधते हुए कहा इस शिखा की कसम ! एक दिन शकडाल के कुल का नामोनिशान मिटाकर रहूँगा। अपमानित होकर वररुचि पाटलिपुत्र छोड़कर चला गया। अनेक प्रदेशों में भ्रमण करता हुआ तीन मास बाद आया और उसने कुछ सहयोगियों को साथ लेकर एक योजना बनाई। प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर वह गंगातट पर जाकर १०८ श्लोक बोलकर गंगा जी की स्तुति करता। फिर गंगा में से एक नारी हाथ बाहर आता और एक लाल थैली वररुचि के हाथों में फेंक देता। वररुचि लाल थैली को गंगा मैया का कृपा प्रसाद बोलकर ग्रहण करता। उसे खोलता तो उसमें से १०८ स्वर्णमुद्राएँ निकलतीं। लोगों ने यह देखा तो आश्चर्य करने लगे। धीरे-धीरे पाटलिपुत्र में यह खबर फैल गई कि वररुचि को राजा ने स्वर्णमुद्राएँ देना बन्द कर दिया तो क्या हुआ। अब तो उस पर गंगा मैया प्रसन्न हो गई हैं। जो नित्य उसे १०८ स्वर्णमुद्राएँ देने लगी हैं। राजा धननन्द ने भी यह खबर सुनी। महामंत्री शकडाल से पूछा- 'मंत्रिवर, क्या ऐसा हो सकता है? यह सत्य है?' 16 शकडाल ने दो दिन का समय माँगा। फिर अपने विश्वस्त गुप्तचरों को भेजकर पता लगाया। रात होने पर कुछ गुप्तचर गंगा के किनारे झाड़ियों में छुपकर बैठ गये। मध्य रात्रि के समय एक पुरुष आकृति गंगातट पर आई। वह पानी के बीच गई। थोड़ी देर बाद वापस नदी किनारे पर आकर गंगातट पर बनी वररुचि की कुटिया की तरफ चली गई। एक गुप्तचर धीरे-धीरे पानी के बीच वहीं पहुँचा। उसने हाथों से इधर-उधर टटोला। एक लकड़ी का यंत्र मिला। उसी पर वह नारी का हाथ लाल चूड़ियाँ पहने बना हुआ था। उसी यंत्र के लकड़ी के डंडों के सहारे वह उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ वररुचि खड़ा होकर गंगा स्तुति करता था। वहीं खड़ा होकर उसने पानी में टटोला तो पैरों के बीच एक लकड़ी का यंत्र लगा। उसने यंत्र को ज्योंही पैरों से दबाया तो वह नारी हाथ पानी में से निकला और लाल थैली उछली। थैली सीधी उसके फैले हुए हाथों में आकर गिरी। गुप्तचर को सारा भेद मालूम हो गया। उसने थैली लाकर महामंत्री को दे दी और पूरी जानकारी भी ।
SR No.006284
Book TitleAarya Sthulbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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