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तभी चाणक्य उठकर आया
महामंत्री शकाल का ज्येष्ठ पुत्र स्थूलभद्र है यह । नृत्यकला में जैसे आप अद्भुत हैं, वीणा वादन में यह भी बेजोड़ है।
अच्छा! श्रेष्ठ वीणा वादक होकर तुम आज तक हमारे कानों को तृप्त नहीं किया?
आर्य स्थूलभद्र
स्थूलभद्र ने वीणा लेकर स्वर छेड़े। लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनने लगे।
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वाह ! अद्भुत ! साक्षात् गंधर्व कुमार है यह!
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आप महाभाग के दर्शन पुनः कुब होंगे।
सभी को प्रणाम करके स्थूलभद्र अपने आसन पर आता है। तभी रूपकोशा नजदीक आकर मुस्कराती हुई गुलदस्ता भेंट करके कहती है
आज इस
यह
उत्सव भी हों जाय ।
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हाँ, हाँ, कृपया अपनी मधुर वीणा की झंकार से सबको आनन्दित कीजिए।
स्थूलभद्र कुछ नहीं बोला अपलक उसे देखता रहा । चाणक्य ने कहा(शीघ्र ही आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।
| और स्थूलभद्र को लेकर वापस आ गया।