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________________ ४. बुद्धिवंत विण भ्रम नां मिटै, तिण सूं थे बुद्धिवांन। जाय संका मेटौ जेहनी', इम कहि मेल्या ते स्थांन॥ ५. टोकरजी हरनाथजी, वीरभाणजी साथ। भीक्खू -शिष भारीमालजी, दिक्षा दी निज हाथ। ६. औ साथ लेई भीक्खू आवीया, राजनगर मझार। संवत अठारै पनरै समै, चौमासौ गुणकार॥ ७. चूंप२ धरी चरचा करी, भायां थी तिण वार। ते कहै बात भीक्खू भणी, आप देखौ आचार॥ ८. आधाकर्मी थानक आदऱ्या, मोल लिया प्रसीधी। . उपधि-वस्त्र-पात्र अधिक ही, आ पिण थे थाप कीधी॥ ९. जांण किवाड़ जड़ौः सदा, इत्यादिक अवलोक। म्हे वंदणा करा किण रीत सूं, थे तो थाप्या दोख। १०. द्रव्य-गुरु-नौ वैण राखवा, भीक्खू बुद्धि नां भंडार। ___अकल चुतराइ करी तदा, दीया जाब तिवार।। ११.कळा विविध 'केलवी करी', त्यांनै पगां लगाया। ते कहै संक मिटी नहिं, पिण निसुणौ मुझ वाया।। १२. आप वैरागी बुद्धिवंत छौ, आप री परतीत। तिण कारण वंदणा करां, आप जगत मैं वदीत।। १३.इम कहिनै वंदणा करी, इह अवसर माय। ___भीक्खू रै असाता वेदनी, उदय आवी अथाय॥ १४. अधिक ताव अति आकरौ, 'सीओ" दोहरौ सैहणौ। उत्तम नर 4 ते अवसरै, रूडै चित्त रैहणो॥ १५.अधम पुरष दुख ऊपनां, करै हाय-तराय। समचित वेदन नां सहै, पापे । १६. तीव्र ताप नी वेदना, भीक्खू नैं। अधिकाय। तिण अवसर मैं आवीया, एहवा अध्यवसाय॥ भराय॥ १. तेहनी (क)। २. उमंग/चाव। ३. चूलिए की कपाटों की अपेक्षा से। ४. चतुराई (क)। ५. रच कर। . . . . . - ... ६. विदित/विख्यात। ७.शीत लग कर आने वाला विषम ज्वर-- मलेरिया। भिक्खु जश रसायण : ढा. २------
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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