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दूहा
१. अल्प दिवस रै आंतरै, सीख्या
सूत्र-सिद्धंत। ___तीव्र बुद्धि भीक्खू तणी, सुखदाई
सोभंत॥ २. विविध समय-रस वांचतां, वारू कियौ विचार।
अरिहंत वचन आलोचतां, ए असल नहीं अणगार।। ३. यां थापीता थानक आदऱ्या, आधाकर्मी
अजोग। मोल लिया माहै रहै, नित्यपिंड लियै निरोग। ४. पडिलेह्यां विण रहै पड्या, पोथ्यां रा 'गंज' पेख।
विण आज्ञा दिक्षा दियै, विवेक-विकळ विसेख॥ ५. उपधि-वस्त्र-पात्र अधिक, मर्यादा
उपरंत। दोष थापै जांण-जांणनैं, तिण सूं औ नहि संत। ६. सरधा पिण साची नहीं, असल नहीं आचार।
इण विध करै आलोचना, पिण द्रव्य-गुरु सूं अति प्यार।। ७. पूछ्यां जाब पूरौ न दै, काळ कितौ इम थाय।
पीत द्रव्य-गुरु सूं परम, ते करै सोभ सवाय।। ८. पूछे बात आचार नीं, जांणै वैरागी जेह।
तिण सूं पूछे वलि-वली, पिण नहीं और संदेह।। ९. पट-धारक भीक्खू प्रगट, हद आपस मैं हेत। इतलै कुण विरतंत हुऔ, सुणजोर . सहू सचेत।।
ढाळ : २
(प्रभवो मन मैं चिंतवै) १. इह अवसर मेवाड़ मैं, राजनगर
राजसमुद्र पासै वस्यौ, अधिका त्यां आइठांण। २. त्यां वस्ती घणी महाजना तणी, जाण सूत्रांना जेह।
वंदना छोड़ी निज गुरु भणी, दिल मैं पड़ियौ संदेह।। ३. मुरधर मैं रुघनाथजी, सांभळी सहू बात।
भीक्खू नैं तिहां भेजीया, संका मेटण १. ढेर।
३. अधिष्ठान/चिन्ह। २. सुणज्यो (क)।
४. ज्ञाता/जानकार।
सुजांण।
साख्याता
भिक्खु जश रसायण