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१ बुलावौ याद २ अरिहंत सिध प्रणमी करी, तीनु आहार रा त्याग त्याग जावजीव छै, ३ कहै परम भगता सिष पाटवी, सांम कहैहै- आगार किसौ राखणौ,
मझे,
दूहा
भारमलजी भणी, वले करंता आवीया, 'चटके "
पोतैइ
कीया
'ऊंचै सुर २ बोल्या इम क्यूं न राख्यौ अमल किसी करणी देही आसरै दोय घड़ी दिन
री
मैं उज्जम
दरसण
काज।
आवै धिन धिन ए मुनिराज ॥
४ वारस दिन बेला
५
कियौ संथा सांमजी, मन
घणा
खबर हुआ अणसण तणी, वेराग वधीयो अति घणौ, कहै
१ केइ कहै संथारौ सीझै सांम रो, केइ कहै कुसील रा त्यांग छे,
५
२ केइ अगन आरंभ नहीं आदरै,
केइकां रे नीलोती खांणी नहीं, ३ ' केइकां धीज थापी थी धेखियां',
अनामी घणा आये नम्या,
ढाळ : १०
(सहेल्यां ए वांदो रूड़ा साध० )
१.
. शीघ्र ।
२. ऊंचे स्वर से ।
४ पडिकमणो कीयां पछै पूजजी, सिष कहैं वखांण रो कारण किसौ, आरज्यां क्यांइ अणसण लियौ हुवै, मुज अणसण मैं उचरंग सूं,
सतजुगी
भवजीवां! तुमे वांदो भीखू भाव सू।
उभा
भिक्खु-चरित : ढा. १०
त्यां लग म्हांरे हो काचा पाणी रा पचखांण । घणां छोड्यौ हो सिनांन सुमता आंण ॥
ओ तो पूजजी संथारो कीयो सोभतो ॥
सुजाण ।
आंण ।।
पचखांण ।
वांण ॥
अगार ?
सार ।।
जांण ।
आंण ॥
केइ करै हो छ ही काय हणवा त्याग। इत्यादिक हो हुओ घणो वैराग ॥ भव. ते पिण इचरज हो पाम्यां तिणवार । त्यां पिण जांण्यौ हो ओ मारग तंत सार ।
सिष नैं कहै हो विध सूं करौ वखांण । पूज बोल्या हो पाछा इमरत वांण।। ओ. तिण ठांमे हो जाय करां छां वखांण । उपदेस हो देवौ मोटे मंडाण ॥ ओ.
३. कई विपक्षी लोगों ने यह शर्त की थी कि भीखणजी द्वारा चलाया गया मार्ग सही है तो उन्हें अंत में अनशन आयेगा।
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