SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूहा १ पांचूइ आश्रव माहिलो, लागौ जांण्यो किण वार। व्रत संभाळ्या सांमजी, आलोव्या अतीचार।। २ बड़ा सिष सुवनीत री, जुगती मिलीज जोड़। 'लैहर काई राखी नहीं, काट्या कर्म कठोर॥ ३ 'फोरी' असाता 'फेरा'२ तणी, और असाता नहीं तिणवार। षट सिष सेवा साचवै, एहवा पुन संच्या सार॥ ४ आज्ञा उपर आदरी, भीक्खू भलेज भाव। जनम सुधार्यो जुगत सूं, जांण तिरण रो डाव ॥ ५ सखरी करी संलेखणा, अणसणनों इधकार। ___भाव धरी भवीयण सुणो, आळस सर्व निवार॥ ढाळ : ९ (आवीयो रावण लोक डरावण) भाद्रवा सुकल पख पंचमी परगटी, चोथ भगत चोविहार ठावै। असाता इधक तिरखा तणी उपनी, सूर कायरपणो नाय ल्यावै॥ कर हो जीव!तूं भजन भीखू तणो॥ २ पारणौ कीधौ छठ परभात रो, ओषद अलप सो आहार लीयो। ते पिण आहार समौ नही परगम्यौ , तिण दिन तीनूं आहार नो त्याग कीयौ॥ कर. ३ सातम-आठम आहार ले अलप सो, तितखण त्याग तो कर लेवै। पुदगल सरूप तो पूज पिछांण नै, आसा वंछा सहू मेट देवै॥ कर. ४ खरे मते कहै खेतसी 'खांच कर, 'तरके" त्याग नहीं कहिणो। पूज कहै-देही पातळी पारणी, तेरस दिन तो अणसण लेणौ। कर. ५ विरधो सेठ तो श्रावक सनमुखे, विवध प्रकार सूंखड़ी आपै। पूज़ कहै-वंछा नहीं मांहरै, थिर कर मोख सं पीत थापै॥ कर. १. उच्चावच भाव। ५. सम्यग् रूप में परिणत नहीं हुआ। २. थोड़ी। ६. आग्रह। ३. दस्त। ७. तत्काल। ४. दांव/अवसर। भिक्खु-चरित : ढा. ९ २९५
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy