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६ च्यार तीरथ नै सुध चलायवा, सीख दीधी सुखदाय।
करलौ काठौ लागौ हुवै, तो त्यांनै दीज्यौ खमाय॥ सुणज्यो. ७ म्है चरचा कीधी चूंप सूं, घणा सूं ठांम-ठांम।
करलौ वचन लागौ जांणीयो, त्यांनै खमाया ले-ले नाम।। सुणज्यो. ८ जिण मारग रा धेषी छै घणा, 'छिद्रपेही १
अथाय। ___ 'खेद २ आई हुवै किण ऊपरै, तो देऊं सकल नै खमाय॥ ९ तस थावर आद जीव री, हिंसा लागी हुवै कोय।
मन वचन काया करी, तो मिच्छामी दुकडं' छै मोय।।सुणज्यो. १० क्रोध मांन माया करी, लोभ भय वस होय।
जे कोइ झूठ लागौ हुवै, 'मिच्छामी दुकडं' छै मोय। सुणज्यो. ११ कोई अदत मोनै लागौ हुवै, सूतां जागतां जोय।
ममता धरी हुवै मइथून सूं, तो आलवण खाते होय॥ १२ सिष-सिषणी वसतर पातर ऊपरै, मुरछा वंछा कीधी देख।
मन वचन काया करी, 'मिच्छामी दुकडं' विसेख।। सुणज्यो. १३ एहवी आलोवणा सुणे, आणै मन वेराग।
ते पिण कर्म खपावे आपरा, पामै सुख अथाग।। सुणज्यो.
१. छिद्रान्वेषी।
२. उत्तेजना।
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भिक्खु जश रसायण