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________________ दूहा १ चारित लीधौ चूंप सूं, पाखंड भवियण रै मन भावता, हुआ २ उदै-उदै पूजा कही, समण १ आदिनाथ तिण सूं पूज प्रगट थया, ३ ओपम तो आछी कही, चोरासी अति दीपती, ४ वले दसमां अंग इधकार मैं, समण भीखू नै सोभती, वले षट दस दीधी ओपमा, 'उतराधेन अधेन ६ इण अणुसारे ओळखौ, भीखू नै ओपम गुण आछा घणा, तिण रौ पार न इग्यारमें, श्री वीर कह्यौ तीर्थंकर नाम ७ गुणवंत गुर ना गुण गावतां, हिवे ओपम सहित गुण वरणवूं, ते इण दुषम आरे कर्म कटीया जी, ए जिन-वचन समण - निग्रंथ सूत्र कही भाख १. उत्साह । २. अणुओगदाराई -सू. ७०८ भिक्खु-चरित : ढा. ४ मोटा निग्रंथ नीं आदेसर जी, जिणेसर पंथ ढाळ : ४ ( हरिया नै रंग भरियाजी ) गया बहुश्रुती नै सुणजो नै अणुजोगदुवार तीस ओपमा जग भली निवार | अणगार ॥ जांण । गोत कोइ चित प्रमांण ॥ श्रीकार । मझार ॥ तंत भगवंत ॥ श्रीकार । विसतार ॥ पामंत ॥ बंधाय । ल्याय ॥ तारण धर्म आद कढ़ी परगटीया आद जिणंद भंत । गुरु। अरिहंत । ए इचरज इधक सांम वरण अत सोवै जी, मन मोवै नेम जिणंद ज्यूं त्यांरी वांणी अमीय समांण भवियण रे मन भाया जी चित चाया तीरथ चार मैं। मुनि गुण रतनां री खांन ॥ ३. पण्हावागराई, अ. १० सू. ११ । ज्यूं । आवंत ॥ २८३
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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