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४ ते करै दलाली हो बोलै बे कर जोड़ी ताहि,
धर्म आचार्य मोटा गुरु जांणनै जी, सांमी चोमासो करो सैहर सरीयारी माहि,
आ वीणती मांनो करपा भाव आणनै जी॥ ५ चतुराइ सूं हो वीणती कीधी वारूंवार,
अबको चोमासो सरीयारी कीजिये जी। सूझती छै हो पकी हाट विचार,
सांमी तिण ठांमें वासो लीजिये जी।। ६ केतलायक दिन रहेनै हो सांमीजी तो कीधौ विहार,
बगड़ी रहेनै कंटाळ्ये आया वही जी। ठांम-ठांम हो वीणती करे नर-नार,
सांमी तो सरीयारी चलाय आया सही जी।। ७ सरियारी हो सोभे सैहर कांठा री कोर,
'दोलो-दोलो' मगरो' गढ़ कोट ज्यूं दीसतो जी। राज करै छै हो तिहां राज राठोर,
___ कुंपावत करड़ी छाप नों दीपतो जी॥ ८ जाडी वसती हो त्यां माजना री जाण,
जठै महिमा घणी छै जिण धर्म तणी जी। बहु नर-नारी हो सुणे साधां रा बखांण,
भली तपस्या करै कइ कर्म काटण भणी जी।। ९ तिहां मुनि आया हो सप्त ऋषि अणगार,
सुध संजम पाले इंद्रयां नै जीपता जी॥ सांमी सोभे हो साधां रा सिरदार,
गणनायक रिष भीखनजी दीपता जी।। १० आग्या ले नै हो उतऱ्या पकी हाट,
रखे दोष लागै तो रहे मुनि धड़कता जी। बखांण-वाणी रा हो लागै छै तिहां थाट,
घणा नर-नारी सुण-सुणनै हीयै हरखता जी।।
१.चारों ओर। २. पहाड़।
३. सघन। ४.महाजन।
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भिक्खु जश रसायण