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________________ दूहा १ बयाली वरसां जग पूजजी, बोहत कियो उपगार। विचरत-विचरत आवीया, मुरधर देस मझार।। २ उपगार कीयौ दोय वरस मैं, मारवाड़ . मैं आय॥ च्यार साध, सात साधवियां हुई, त्यां संजम लीयो सुखाय॥ ३ वले श्रावक-श्राविका किया घौं, विचरया घणां गांमां-नगरां माय। जणे पिण उपगार कीयौ घणां, कह्यौ कठा लग जाय? ४ हिवै चरम किल्यांण सामी तणों, अण भव आश्री जांण। किहां विचस्या किण सैहर मैं, प्रभव पोहता किहां आंण? ५ छेला-छेला गांम फरसता, छेहलाइ करता विहार। विचरत-विचरत आवीया सोजत सैहर मझार।। ढाळ : ५ (अभिनंदन वांदूं नित मनरली) १ विचरत-विचरत हो आया सोजत सैहर मझार, आग्या लेईनै छत्री माहे उतश्याजी। ते छत्री छै हो मुहता रायमल री विचार, उण ठांमे आगेइ उपगार कियौ घणौ जी।। २ त्यां बहु आया हो साध-साधवी सुविनीत, केइ दरसण करवा धर्म चरचा धारणै जी। त्यां नै पूरी हो पूजजी री प्रतीत, केइ आया चोमासा री आग्या कारणै जी।। ३ भीखू त्यां नै हो दिया चोमासा भळाय, मुनि पिण चोमासा रो कीधौ हुवेला मतोजी। एतले आयो हो हुकमचंद आछो चलाय, धर्म दलाली माहि आछो दीपतो जी॥ भिक्खु-चरित : ढा. ५
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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