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अरिहंत आज्ञा थापनै, श्रद्धा दी ओलखाय।। मरणधार शुद्ध मग लियो, कमिय न राखी काय। स्वामी सूत्र-न्याय संभलायनै, व्रत-अव्रत दीधी बतलाय (९ दू. १)
थिर नींव आज्ञा भिक्खु थापन, वारु जिन-वचन थाप्या विशाल। बौद्धिकता का उपयोग ____ आचार्य भिक्षु की आगमों पर अपार श्रद्धा थी। साथ ही साथ उनकी बौद्धिक क्षमता भी प्रबल थी। इसीलिए वे आगम-सत्यों की स्पष्टता के लिए युक्ति-तर्क का भी सहारा लेते थे।
कुछ लोग केवल सूत्र-निश्रित ज्ञान को ही प्रमाण मानते हैं। उनके अनुसार आगमों के अतिरिक्त अन्य हेतु-दृष्टान्तों का कोई मूल्य नहीं होता। जयाचार्य ने उनके पक्ष को प्रस्तुत करते हुए कहा है--
सूत्र कही जे सहु, निर्मल सूत्र ने श्राय।
बुद्धि स्यूं मिलती बात वर, सहु असूत्र ने श्राय (१५ दू. ४) आचार्य भिक्षु की आगम साक्ष्य से तत्व-निरूपण शैली की चर्चा करते हुए वे आगे कहते हैं--
सूत्र साख श्रद्धा सखर, स्वाम दिखाई सार।
सूत्र तणी ने श्राय सुद्ध, आगम अर्थ उदार (१५ दू. ५) पर नंदी सूत्र का साक्ष्य देते हुए वे मनुष्य की बौद्धिक क्षमता का समादर करते हुए बताते हैं--
चार बुद्धि स्यूं चिंतवी, दिये विविध दृष्टंत।
असूत्र ने श्राय ओलखो, वर नंदी विरतंत (१७ दू. ६) इसीलिए
उत्पत्तिया बुद्धि स्यूं अख्या, मिलता न्याय मुणंद। केशी ने परे शुद्ध कथ्या, दृष्टांत अति दीपंत (१७ दू. १०) सखरो भिक्षु स्वाम नो, महामोटो मतिज्ञान।
साचा न्यायज सोधिया, दृष्टांत देई प्रधान (१७ दू. ९) अनेकांत दृष्टि
विचार महत्त्वपूर्ण होता है, पर उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है विचारक। विचार तो ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से उपलब्ध होता है, पर उसमें जो सम्यक्त्व आता है वह मोहमुक्त विचार के संस्पर्श से ही आता है। इसी आधार
(sociv)