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________________ दूहा REFEEEEEEE १ इण विध करी आलोवणा, निरमळ निरतीचार। स्वाम हुआ शुद्ध रीत सूं, अब अणसण अधिकार।। २ भाद्र सुकल पंचम भली, संवच्छरीनों सार। ___स्वाम कीयौ, उपवास सुद्ध, चित उजल चौविहार। ३ अतुल तृखा नी ऊपनी, अधिक असाता... आंम। सखर आंण सूरापणौ, समचित सहीज स्वांम।। ४ पूज कियौ छठ पारणौ, ओषध अल्प आहार। पिण ते समौ न परगम्यौ, वमन हुऔ तिण वार।। ५ तिण दिन तीनूं आहार नां, त्याग किया तहतीक। पुद्गल स्वरूप पिछाणीयौ, निमळ स्वाम निरभीक। ढाळ : ५९ (राजा राघव राया रो राय कहायौ) . १ सातम-आठम भीक्खू स्वामजी, अल्प सो लियौ आहारो। ततखिण त्याग कियौ मन तीखै, हद पूज रौ मन हुसियारो॥ भीक्खू स्वाम आप जिनमत अधिक जमायौ॥ २ खेतसीजी स्वामी कहै खांच 'नै तरकै न करणा त्यागो। पूज कहै-देही पतळी पाड़णी, वारु विशेष चाहिजै वेरागो। भीक्खू. ३ भाद्र सुकल नवमी दिन भीक्खू, कहै-करूं आहार नां पचखांण। कहै खेतसीजी-मुझ कर केरौ, चरम आहार ल्यौ पिछांण।। भीक्खू. ४ अल्प आहार खेतसीजी आणीयौ, चाख किया पचखांणो। वारू मन राख्यौ शिष सुविनीत रौ, पिण बहुल इच्छा मत जांणो।। भीखू. ५ दशम दिन भारीमाल वीनवै, स्वामी आहार कीजै सुविहांणो। चाळी चावळ दश मोठ रै आसरे, चाख किया पचखांणो॥ भीक्खू. १. जोशीले शब्दों में। २. शीघ्र। २०० भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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