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दूहा
१ सीखांवण दी स्वामजी, आछी अधिक अनूंप।
हळुकर्मी धारै हियै, सखरी सीख सद्रूप॥ २ नीर गंगा ज्यूं निरमला, पूज तणा परिणाम।
निमल ध्यान निकलंक चित्त, समता रमता स्वाम॥ ३ पद युगराज सु आदि मुनि, पूछा करै सुजोय।
अछै खेद सूं आपरै? स्वाम कहै नहिं कोय॥ ४ निमल चरण वर करण निज, विमल... सुधा सम वांण।. · अमल दियै उपदेश अरु -सुणज्यों चतुर सुजाण॥
ढाळ : ५६ .
(सायर लैहर स्यूं जाणै) १ भारीमाल शिष भारी जी, आदि साधां भणी। स्वाम कहै सुविचारी जी, वांण
सुहांमणी॥ २ परभव निकट पिछांणो जी, दीसै मुझ तणौ।
मुझ भय मूल न जाणो जी, हरख हियै घणौ॥ ३ घणां जीवां रै घट माह्यौ जी, समकत
रूपीयो। - हैं बीज अमोलक वायो जी, मग
ओळखावीयो॥ ४ देशव्रत दीपायो जी, लाभ अधिक लीयो।
साधपणौ सुखदायो जी, बहु जन नैं दीयो।। ५ में जोड़ां करी सूत्र-न्यायो जी, शुद्ध जांणे सही। ' म्हारा मन रै माह्यौ जी, ऊंणारत' नां रही। ६ थे पिण थिर चित्त थापी जी, प्रभू पंथ पाळजो। कुमति कलेश नैं कापी जी, आत्म
उजवाळजो।। ७ रायचंद ब्रह्मचारी नै जानो जी, सीख दे सोभती।
तूं बालक छै बुद्धिवानो जी, मोह कीजै मती॥ १. उणायत (क)।
२. मिटाकर।
भिक्खु जश रसायण : ढा.५६
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