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________________ चित्र भी अभिलिखित हुए हैं। पर इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसकी आधार भूमि जैनागम है। इसके चरित नायक आचार्य भिक्षु भगवान् महावीर के प्रति पूर्ण समर्पित थे। आचार्य भिक्षु और जिन-वचन एक दूसरे के पर्याय थे। उनकी सारी धर्मक्रान्ति का आधार ही जैन आचार-विचार की प्रतिष्ठा था। आचार्य भिक्षु ने उसके बलाबल की परीक्षा कर शास्त्र-समस्त आचार-विचार का रूप सामने रखा। जयाचार्य लिखते हैं-- विविध समय रस बाचतां, वारू कियो विचार। अरिहंत वचन आलोचतां, ए असल नहीं अणगार (२/२) आगम रहंस अनुपम लही; स्वाम-भिक्षु सार। शुद्ध श्रद्धा शोधी सही, बलि आचार-विचार (२/१) आचार्य भिक्षु की धर्मक्रांति का यही मूल मंत्र है। 'स्वामी श्रद्धा दिखाई जिण वयण स्यूं' जहां भी उन्हें जिन वचन की विराधना दिखाई दी उसे सुधारने में अपने आपको झौंक दिया। जयाचार्य ने भिक्खु जश रसायण में आचार्य भिक्षु की आचार तथा विचार दोनों की क्रांति पर प्रभूत प्रकाश डाला है। शिथिलाचार पर वे जोरदार प्रहार इन शब्दों में करते हैं - ___ज्यूं भेख पहिरै रोटी कारणे, तेहने कहो चोखो चारित्र पाल। ते कठिण चारित्र पालै किणे विधै, दुक्कर कह्यो है दीन दयाल।(३६/१४) सांगधारी फूटी नावा सारिखा, आप डूबै औरां ने डवोय। पत्थर नावा जिम कडा पाखंडी, जे तीन सौ तेसठ जोय। (३६/१७) कहीं-कहीं शिथिलाचार पर किया गया प्रहार कुछ कटु भी हो गया है, पर यह प्रहार किसी व्यक्ति पर नहीं होकर शिथिलाचारिता की मनोवृत्ति पर है। विचार की विषमता को मिटाने के लिए भी भिक्खु जश रसायण में बहुत कुछ लिखा गया है। इस संदर्भ में जहां भी आगमों के प्रमाण आये हैं वहां हर प्रसंग पर उन्होंने ढेर सारे प्रमाण संकलित कर लिए हैं। उदाहरण के लिए हम सुपात्रदान के प्रसंग को लें। आचार्य भिक्षु की इस विषय में पूर्व सम्प्रदायों से मत-भिन्नता थी। जयाचार्य ने उस मतभिन्नता को दर्शाने के लिए इस प्रसंग पर आगमों के २१ संदर्भ प्रस्तुत कर दिए। उनकी सूची इस प्रकार है-- १ भगवती श. ८ उ. ६ सू. २४७ ३ सुयगडांग श्र. १ अ. ११ गा. २० २ निशीथ उ. १५ सू. ७६ ४ भगवती श. ७ उ. १ सू. ४-५ (noxii)
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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