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११ सिरियारी ना महासती, 'पनांजी'31
पहिछांण। संजम पाळ्यौ स्वाम गण, संथारौ
सुविहांण॥
सोरठा १२ कांकरोली री कहाय रे, 'लालांजी'32 संजम लीयौ।
'परवस सीत' सुपाय' रे, इण कारण गृह आवीया।। १३ बहु वरसां सूं विचार रे, श्रावक धर्मज साधीयौ। तप-जप कियौ उदार रे, फिर चारित्र नहीं पचखीयौ।
ढाळ : ५२
(ज्यांरा इन्द्र नरेन्द्र रखवाला) १ 'गुमांना'33 महा गुणवंती, तासोल तणी चित संती।
जीवा मुनि री बड़ी मा जांणी, सती संजम लीयौ सुखदाणी हो लाल॥
सतियां नामज मोटी॥ध्रुवपद ॥
२ एक मास कीयौ अति भारी, दोय मास छेह है दिल धारी।
सुद्ध राजनगर संथारौ, सती सरल भद्र सुखकारौ हो लाल।। सतियां. ३ वर सैहर बूंदी रा वासी, वारू श्रावगी कुल सुविमासी। खेरवै संथारो खंती, 'खेमांजी' खेम करती हो लाल।। सतियां.
सोरठा ४ जूं परिसह थी जांण रे, छूटी 'जसु' छिनक मैं, 'चोखी' टळी पिछांण रे, कांकरोली री बिहुं कही।
(ज्यांरा इन्द्र नरेन्द्र रुखवाला) ५ सतजुगी री बहिन सुख वासी, ऋष रायचंदजी री मासी,
पिउ पुत्र तज्या पहिछांणी, 'रूपांजी'' महा रलियांणी हो लाल।। सतियां.
१.शीतांग/सन्निपात/चित्तविभ्रमता के कारण पागल सी हो गई।
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भिक्खु जश रसायण