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________________ ३१ पाली मैं संजम लै प्रत्यक्ष, मुनि तपसा करवा मंडीयौ। कबहिक छासठ कबहिक अठावन, चढत-चढत अधिकौ चढीयौभरम. ३२ कदहिक च्यार मास मैं कीधा, सतर पारणा सुमति सहू। ग्रंथ-बहुल भय-तप वर्णन गुण, तिण कारण सहु ते न कहूं। भरम. ३३ साढी च्यार पौहर संथारौ, स्वाम पछे सुद्ध गति सारु। पाली धर्म-उद्योत प्रगट हद, वरस छासढ़ मुनि वारु॥ भरम. ३४ मुनि महिमागर अधिक ओजागर, गुण सागर नागर ज्ञानी। 'वचन-सुधा-वागर धर्म जागर', धर्म-धुनी३ धर महाध्यानी।। भरम. ३५ अंजन मंजन चंदन अंगन, शिव शंजन रंजन साधी। भ्रम-भंजन भीक्खू गुरु भेटी, अरि गंजन मति आराधी। भरम. ३६ स्वाम-शरण सुख-करण तरण शुद्ध, तम-भ्रम हरण स्वाम तरणी। . शिववधु-वरण धरण दुधर सम, कहा कहूं मुनि नी करणी? भरम. ३७ सुरगिर धीर गंभीर समीर सदा- सुख सीर सुतार सजै। तोड़ जंजीर वीर वड़ तुम हो, ऋष भीक्खु गुण हीर रजै॥ भरम. ३८ पर्म प्रतीत रीत प्रभु वच सैं, लोक वदीत अनीत लजै। ज्ञान-संगीत नीत हद गुणियण, भल भीक्खू ऋष जीत भजै॥ भरम. ३९ वांण विमल अति निमल कमल वर, जमल अमल सिव मग जांणी। समल तमल मिथ्या मति सोखी, आप सुति अघ दल - हाणी॥ ४० आप तणें प्रशाद अनोपम, तंत मुनिस्वर बहु तरीया।। आप सुरतरु आप गुणोदधि, आप घणा ना अघ हरीया।। ४१ समरण स्वाम तणों नित साधु, स्वाम तणों मुझ नित सरणौ। आसापूरण सांम अनोपम, निमळ चित्त कीधौ निरणौ।। ४२ सखरा स्वाम मुनी गुण साचा, म्हैं संक्षेप थकी थुणिया। जल-सागर किम झालै गागर, गुण अनंत अथग अनग गुणीया।। १३ निमळ पचासमी ढाळ निहाळी, भल भीक्खू गुण सूं भरीया। 'जय-जश' संपति करण जांणजो, इण -खंड भीक्खू · अवतरीया।। १. वचन रूप अमृत बरसाने वाले। २. धर्म में जागृत रहने वाले। ३. धर्म में तन्मय। ४. सूरत। भिक्खु जश रसायण : ढा. ५० १७३
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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