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४ विगड्यौ पछै
'वीर भांण'',
'पाछै कह्यौ प्रबंध पहिछांण',
तंतसार,
सुखकार,
भाळ,
सुविशाल,
सुखकार,
साज
८ बगड़ी
सार, सैर विसेख, देश ढूंढार मैं देख, ९ स्वाम भीक्खू रै प्रसाद, उपजै
मन
५ ' टोकरजी"
संत
' भारीमाल'
६
संत
७ सोम्य
दोनूं नै
बड़ा
मूर्ति
थी संजम
अहिलाद, युवराज,
१० भारीमाल
पदवीधर
भव
पाज,
११ 'लिखमैजी' संजम लीध,
'पडिवाइ कहौ कद
सीध',
१२ 'अखेरामजी"
१५
भेषधार्यां नें
१३ पारख जाति लोहावट नां
१४ धर तप छेड़े
अखै दीवाली
'अमरोजी ""
अभवी थी
१६ संत बड़ा समझाया भीक्खू
सुमंड,
छंड,
पिछांण,
सुजांण,
धिन्न,
दिन्न,
धार,
अधिकार,
छूटक
›
'सुखराम ३ स्वाम,
१. पूर्वोक्त ढाल ८ गा. २१, २२, २३। २. जो प्राणी सम्यक्त्व से गिर जाता है, वह प्रतिपाती सम्यक्दृष्टि कहलाता है । वह उत्कृष्टतः अर्ध पुद्गल परावर्तन काल में मुक्त होता है,
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आज्ञा लोप्यां सूं हो स्वामी अळगौ कियौ । दर्शण मोह पिण हो तिण नैं दबावीयौ ॥ हाजर रहीता हो स्वामी 'हरनाथजी " ।
वर जश वारु हो तास विख्यात जी ॥
पद युवराज हो पूज समापीयौ ।
दंभ मेटी नैं हो थर चित थापीयो॥
स्वाम प्रसंस्या हो अंत्य समैं सही। कीति भीक्खू हो आप मुखे कही ॥ स्वाम टोकरजी हो संथारो लीयौ। हद संथारो हो हरनाथ जी कीयौ ॥ संत दोनूंई हो जन्म सुधारीयौ ॥ समरण साचौ हो अति सुख कारीयौ ॥ सेव स्वामी नीं हो अंत तांई सिरै । अणसण आछौ हो वर्स अठतरै ॥ कर्म प्रभावे हो गण सूं न्यारौ थयौ । देसूंण अद्ध पुद्गल हो उत्कृष्ट जिन कह्यौ ।
स्वाम भीक्खू पे हो संजम आदयौ ।
सुध मन सेती हो पवर चरण धर्यौ ॥
पारख साची हो थे पूर्ण करी ।
चरण आराध्यौ हो थिर चित आदरी ॥
छतीस तेला हो चोला मैं चलता रह्या ।
वर्स इकसठे हो परभव मैं गया ।।
पंच काया थी हो अभवी अनंत गुणा ।
ज्ञानी देवां भाख्या हो पडिवाइ अनंत गुणा ||
वासी लोहावट ना हो पोत्याबंध वही । सुर-तरु सरिखौ हो चरण लियौ सही ॥
ऐसा भगवान् ने कहा है ।
३. शासन विलास और ख्यात के अनुसार 'अखेरामजी' और अमरोजी से सुखरामजी बड़े थे।
भिक्खु जश रसायण