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________________ ५६ एकल थकी पिण बुरौ अविनीतड़ौ रे लाल, साधां रा गण माहै जांन रे सुगुण नर। ___सांमद्रोही सेवग सारिसौ रे लाल, दुमनौ' चाकर दुसमण समानरे सुगुण नर॥सुण. ५७ छळ-बळ खेलै चोर ज्यूं रे लाल, छिद्री थकौ रहै टोळा माहि रे सुगुण नर। ____ चरचा-उपदेश तिण रौ अति बुरौ रे लाल, फाड़ा-तोड़ा काजै करै ताहि रे सुगुण नर॥ सुण. ५८ और साधां रा काढ़े ग्रहस्थ खूचणा रे लाल, तिण सूं बात करै दिल खोल रे सुगुण नर। अंतरंग मैं जांणै आप रौ रे लाल, तिण नै सीखावै चरचा बोल रे सुगुण नर॥ सुण. ५९ गुणग्राम गावै सुविनीत रा रे लाल, तौ अविनीत सूं सह्या नहि जाय रे सुगुण नर। निज आपौ परगट करै रे लाल, म्हांनै तो ललपल' न सुहाय रे सुगुण नर।। सुण. ६० और साधां री आसता उतारवा रे लाल, आपौ प्रगट करै मूढ रे सुगुण नर। गुरु सीख देवै खामी-मेटवा रे लाल, तौ सांहमौ मंड जाए करै खोटी रूढ रे सुगुण नर।। सुण. ६१ जिण नैं आप तणौ करै रागियौ रे लाल, संका औरा री घाल रे सुगुण नर। अभिमांनी अविनीत नी रे लाल, एहवी छै ऊंधी चाल रे सुगुण नर॥ सुण. ६२ सुविनीत रा समजावीया रे लाल, 'साल दाळ ज्यूं' भेळा होय जाय रे सुगुण नर। अविनीत रा समजावीया रे लाल, कोकला ज्यूं कानी थाय रे सुगुण नर।। सुण. ६३ समझाया सुविनीत अविनीत रा रे लाल, फेर कितोयक होय रे सुगुण नर। ज्यूं तावड़ौ नैं छांहड़ी रे लाल, इतरौ अंतर जोय रे सुगुण नर। सुण. ६४ अविनीत नैंअविनीत मिलै रे लाल, ते पामै घणौ मन हरख रे सुगुण नर। ____ ज्यूं डाकण राजी हुवै रे लाल, चढवा नैं मिलियां जरख रे सुगुण नर॥सुण. ६५ डाकण मारै मनुष नैं रे लाल, औ करै समगत री घात रे सुगुण नर। डाकण चोर राजा तणी रे लाल, ओ तीर्थंकर नो चोर विख्यात रे सुगुण नर।।सुण. ६६ लंपट रूप-गृद्धी फिट-फिट हुवै रे लाल, जे न गिरें जाति कुजात रे सुगुण नर। ____ ज्यूं अविनीत गृद्धी घणौ खाण रौ रे लाल, विकळां नैं मूंडै विख्यात रे सुगुण नर॥ सुण. ६७ ए अविनीत साधू ओळखावियौ रे लाल, इमहिज साधवी जांण रे सुगुण नर। वले श्रावक नैं श्राविका तणी रे लाल, तिमहिज करजौ पिछांण रे सुगुण नर।।सुण. ६८ साध-साधवीयां री निंद्या करै रे लाल, अवगुण बोलै विपरीत रे सुगुण नर। सूंस कराय ग्रहस्थ भणी रे लाल, त्यांरी भौळा मांनै परतीत रे सुगुण नर। सुण. ६९ केई श्रावक खावै घर तणौ रे लाल, केयक मांगै खाय रे सुगुण नर। ___पिण अविनीतपणौ छूटौ नहीं रे लाल, तौ गरज सरै नहीं काय रे सुगुण नर॥ सुण. १. दो मन वाला। ३. चावल-दाल। २. चाटुकारिता। ४. सूखा हुआ काचर। भिक्खु जश रसायण : ढा. ४१ १३५
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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