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४२ हूं काटूं-बाढं जीभड़ली ताहरी रे लाल, तूं विरुऔ बोलै केम? रे सुगुण नर। ____तूं धसकौ क्यूं न्हाखै पापी एहवौ रे लाल, जब विनीत कहैछ एम रे सुगुण नर॥सुण.
४३ पुत्र थारौ घर आवीयौ रे लाल, आज मिलसी तोसूं निसंक रे सुगुण नर। ___इण रौ वचन म माने औ झूठौ घणौ रे लाल, इणरैजीभ वेरण रौ बंकरे सुगुण नर॥सुण. ४४ ए. दोनू बोलां अविनीत झूठौ पड्यौ रे लाल, पछै गुर सूं झगड्यौ आय रे सुगुण नर।
कहै मो न भणायौ कपटे करी रे लाल, गुर पूछ निरणौ कियौ ताय रे सुगुण नर॥ सुण. ४५ इहलोक मैं गुर नां अविनीत री रे लाल, अकल बिगड़ गई एम रे सुगुण नर।
तौ धर्म आचार्य रा अविनीत री रे लाल, ऊंधी अकल रौकहिवौ केमरे सुगुण नर॥सुण. ४६ नकटी बूटी' कुलहीणी नार नैं रे लाल, परहरी निज भरतार रे सुगुण नर।
जोगी भखरादिक तिण नैं आदरै रे लाल, उवा पिणजाउणलाररेसुगुण नर॥सुण. ४७ नकटी-सरीखौ अविनीतडौ रेलाल, तिण सूं निज गुरु न धरै प्यार रे सुगुण नर।
तिण नैं आप सरीखौ आवी मिलै रेलाल, तब पांमै हरख अपार रे सुगुण नर॥ सुण. ४८ नकटी तौ जोवै भखरादिक भणी रेलाल, अविनीत जोवै अजोग रे सुगुण नर।
जो असुभउदै हुवै अविनीत रे लाल, मिल जाय' सरीखौ संजोग रे सुगुण नर।। सुण. ४९ सौ वार पाणी सूं कांदा धोविया रे लाल, विरुइ न मिटै वास रे सुगुण नर।
घणौ उपदेश दै गुर अविनीत नैं रे लाल, पिण 'मूळ न लागै पास' रे सुगुण नर।। सुण. ५० अविनीत उझिया भोगवती जिसौ रेलाल, रखीया रोहिणी जिसौ सुविनीत रे सुगुण नर। ___गुरु गण सूपै सुविनीत नैं रे लाल, पूरी तिण री प्रतीत रे सुगुण नर। सुण. ५१ किण ही गाय दीधी च्यार विप्रां भणी रे लाल, ते वारै - वारै दूहै ताय रे. सुगुण नर।
पिण चारौ न नीरै लोभी थका रे लाल, तिण सूं दुखे-दुखे मुंइ गाय रे सुगुण नर॥ सुण. ५२ गाय सरीखा आचार्य मोटकारे लाल, दूध सरीखौ ज्ञान अमोल रे सुगुण नर।
शिष मिल्या ब्राह्मण सारिखा रेलाल, ते ज्ञान लीयै दिल खोल रे सुगुण नर॥सुण. ५३ आहार-पांणी आदि व्यावच तणी रे लाल, न करै सार संभाळ रे सुगुण नर। ___एहवा अविनीतारैवस गुर पड्या रेलाल, त्यां पिण दुखे-दुखे कीयौ काळ रे सुगुण नर॥ सुण. ५४ ब्राह्मण तौ एक भव मझै रे लाल, फिट-फिट हुआ इहलोक रे सुगुण नर। ___गुरु ना अविनीत रौ कहिवौ किसूं रेलाल, पीड़ा विविध परलोक रे सुगुण नर॥ सुण. ५५ गर्ग आचार्य नै मिल्या रे लाल, पांच सौ शिष अविनीत रे सुगुण नर।
तिण रौ विस्तार तौ छै घणौ रे लाल, 'उत्तराधेन माहै संगीत'रे सुगुण नर॥सुण. १. नाक कान कटी हुई।
३. बिल्कुल रंग नहीं चढ़ता। २. जावै (क)
४. उत्तराध्ययन अ. २७।
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भिक्खु जश रसायण