________________
ही जाता है। उनकी प्रेरणा से ही भिक्खु दृष्टांत का संकलन हुआ और उनकी प्रेरणा से ही ख्यात का संकलन शुरु हुआ। भिक्खु दृष्टांत के संकलन के पीछे तो भिक्खु जश रसायण की ही प्रेरणा रही है। उन्हें आचार्य भिक्षु के जीवनचरित में देने के लिए ही जयाचार्य ने उनका संकलन किया था । सचमुच इतिहास की सुरक्षा करते-करते जयाचार्य स्वयं ही एक इतिहास पुरुष बन गए। उन्होंने भिक्खु जश रसायण के मिष न केवल एक जीवन-चरित ही प्रदान किया अपितु इतिहास के बहुत सारे तथ्य भी हमें सौंप दिए ।
विषय वस्तु
जैसा कि मैथिलीशरण गुप्त ने राम के बारे में कहा है
"राम ! तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है,
कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है । "
आचार्य भिक्षु का जीवन इतना रसमय था कि वह अपने आप में एक काव्य है। जयाचार्य ने भिक्खु जस रसायण में उसे इस तरह अभिव्यक्त किया है कि उसकी काव्यमयता और भी अधिक मुखर हो गई है। रचना विभाजन
भिक्खु जश रसायण को चार खंडों में बांट कर भी जयाचार्य ने काव्योचित कौशल का परिचय दिया है। सामान्यतः जीवन चरितों में चरितनायक की विशेषताओं के गीत गा दिए जाते हैं, या उसे तिथियों-मितियों का कलेंडर बना दिया जाता है, पर जयाचार्य ने इस चरित्र को एक नया रचना-विभाजन दिया है। प्रथम खंड में जहां आचार्य भिक्षु का रेखाचित्र सा खींचा गया है वहां दूसरे खंड में उनके विचार-दर्शन को अभिव्यक्त किया गया है। तीसरे खंड में भिक्षुदृष्टांत के मनोरम विस्तार को समेटा गया है तो चौथे खण्ड में उनकी शिष्यसम्पदा का परिचय दिया गया है। कुल मिलाकर इसे एक सरस शब्द-चित्र कहा जा सकता है। जयाचार्य की साहित्य-साधना बहुत प्रलम्ब है। उन्होंने साढ़े तीन लाख पद्य-परिमाण साहित्य की रचना कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। उनका साहित्य गद्य में भी है, पद्य में भी है। उसके आख्यानात्मक, विवरणात्मक आदि अनेक भेद-प्रभेद हैं। उनका साहित्यिक कर्तृत्व एवं व्यक्तित्व एक अलग ही विवेचना का विषय है। प्रस्तुत प्रसंग में हमारी सारी चर्चा भिक्खु जस रसायण पर केन्द्रित है।
आचार्य भिक्षु एक अमाप्य महापुरुष थे। उनका जीवन बहु आयामी था।
(xv)