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________________ दूहा जोय।। १ विचरत पूज पधारिया, सरीयारी मैं सोय। प्रश्न' वौहरै पूछीया, जाति खीवसरा २ जीव नरक मैं जाय तसुं, तांणणवाळौर तांम। कुंण है कहौ कृपा करी? इम पूछ्यौ अभिरांम।। ३ भीक्खू उत्तर इम भण, सखर जाब सुखकार। पत्थर कूआ मैं न्हाखीयां, कुंण तसुं खांचणहार? ४ कठिण पत्थर भारे करी, आफेई तल जाय। कर्म-भार सूं कुगति लहै, स्वाम कहै इम वाय॥ ५ बोहरै पूछा वलि करी- जीव स्वर्ग किम जाय। कुंण लेजावणहार तसुं, वारू अर्थ बताय? ६ भीक्खू कहै वौहरा भणी- प्रतख पाणी माय। काष्ट न्हांखै कर ग्रही, ते किण रीत तिराय? ७ तिण काष्ट रै तळं कहौ, किण मांड्या है हाथ? हळकापणा स्वभाव सूं, ऊपर तिरनै आत।। ८ हळको कर्म करी हुवां, जीव स्वर्ग मैं जाय। सगला कर्म रहीत सो, परम मोक्ष गति पाय॥ ९ ऐसा उत्तर आपीया, वारू बुद्धि विनांण। वलि उत्पत्तिया बुद्धि थकी, सखर जाब सुविहांण।। ढाळ ३१ (देवै मुनिवर देशना) १ पूज भणी किण पूछीयौ५- हळको जीव किम होय ललना! दृष्टंत स्वाम दीयौ इसौ, सांभळजो सहु कोय ललना। तंत दृष्टंत भीक्खू तणा ॥ १. भि. दृ. १४१। २. खींचने वाला। ३. अपने आप। ४. भि. दृ. १४२। ५. भि. दृ. १४३। भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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